Sunday, 25 October 2020

तुम भ्रम हो या भ्रमर पता नहीं

तुम भ्रम हो या भ्रमर पता नहीं 
तुम राग हो या समर पता नहीं 

तुम बिंब हो प्रतिबिंब हो पता नहीं ~~~~

छाया भी छाया ढूंढती है जब 
उस जेठ  के सावन हो पता नहीं 

तुम मोह हो या संकल्प पता नहीं

तुम कार्य हो या फल पता नहीं 
हो किस्सा या परिणाम ये भी पता नहीं

13 comments:

  1. मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" प्रकाशित करने हेतु हार्दिक आभार दी।

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  2. बहुत खूबसूरती से आपने प्रकृत‍ि के साथ भावनाओं का साम्य साधा है सधु जी क‍ि ...तुम मोह हो या संकल्प पता नहीं...वाह

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    1. धन्यवाद!
      हार्दिक आभार
      महोदया

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  3. वाह सुंदर व्यंजना ।
    अभिनव सृजन।

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    1. धन्यवाद!
      हार्दिक आभार महोदया

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  4. सुंदर प्रस्तुति, सधु चंद्र दी।

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    1. धन्यवाद!
      हार्दिक आभार

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  5. उत्कृष्ट शब्दों का समन्वय

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