Saturday, 24 October 2020

दावानल



जल-जल कर भीग रही जल में
अगन -तपन जलजला रही
जलती-जलती जल मैं रही
पर ज्वाला जल की न खो रही

जलमयी जलधर तू क्यों जलता
दावानल तो मैं हूँ जल का
धधक-धधक कर जल जाती हूँ
सन्तप्त तुझे मैं कर जाती हूँ|

13 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२६-१०-२०२०) को 'मंसूर कबीर सरीखे सब सूली पे चढ़ाए जाते हैं' (चर्चा अंक- ३८६६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. धन्यवाद माननीया
      मेरी इस रचना को'मंसूर कबीर सरीखे सब सूली पे चढ़ाए जाते हैं' (चर्चा अंक- ३८६६) में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

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  2. जलमयी जलधर तू क्यों जलता
    दावानल तो मैं हूँ जल का
    धधक-धधक कर जल जाती हूँ
    सन्तप्त तुझे मैं कर जाती हूँ|
    ...बहुत खूब। जलना सिर्फ जल जाना नहीं, झुलस कर अगन में दही जाना नहीं। भीगे और जले, जल जाना वही।।।।।।

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  3. धन्यवाद महोदय
    आभार

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  4. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर।

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    1. धन्यवाद!!!
      हार्दिक आभार

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  5. शब्द संचयन कोई आपसे सीखे
    वाह

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