Tuesday, 20 October 2020

माँ की वो गिनी-चुनी साड़ियाँ

माँ की वो पूरानी साड़ियाँ
वो भी गिनी-चुनी
कुछ नयी, तह कर भी रखी थी
पर मान-सम्मान के लिए
आने-जाने के लिए

ख़ूबसूरत तन-मन लिए
पर न पार्लर, न फ़ालतू ख़र्च का आडंबर
न ही लूटना था कोई नाम
माँगभर सिंदूर,भरहाथ चूड़ियाँ
न चटोर,न धृष्ट,न हीं जवाबदेह
शांत,शालीन,दिनभर करती काम

कभी तेरी भी चाहत होगी
सजने-सवंरने-मनमानी करने की
पर तेरा तो था कुछ अलग ही धाम

पाई-पाई का रखती हिसाब
ताकि पूरे कर पाएँ, तू हमारे ख़्वाब

एक अच्छे इंसान बन  जाओ
अच्छी तालीम ले, काबिल हो जाओ----

धनी बनने के तूने, न देखे सपने 
क्योंकि~~~
 बेगाने भी तो थे, तेरे अपने

राह चलते अगर कोई कह दे प्रणाम चाची !!
तो बस!! पूछ लेती उसका पूरा  हाल-चाल 
और बाद में हमसे पूछती कौन था वो??🤔
हम कहते अजीब है तुम्हारा हाल🙄
गजब है मेरी माँ 🙈🥰

ईश्वर का वरदान
लिपटी पुरानी सूती साड़ी में
घर का स्वाभिमान
हम बच्चों की प्राण
समाज का अभिमान...

समाज का अभिमान इसलिए क्योंकि 
महीने भर के राशन में भी तो तू 
बाँट आती थी 
जरूरतमंदों को आहार 
शायद इसीलिए तुम्हारे जीवन में 
कभी ना रहा कोई भार
शायद ही कभी भूखा सोया हो, कोई भाड़ेदार

आज कई नयी साड़ियाँ हैं मेरे पास 
पर तेरे उस अंतिम अनमोल साड़ी में मिले 
मुझे गहरे सुकुन का एहसास----
एक गहरे ...
सुकुन का एहसास---🥰🐣🐣🐣

29 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर आभार माननीय 🙏

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  3. भावपूर्ण सृजन ।

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  4. अन्नपूर्णा का साक्षात् रूप धारण किये , सादगी से भरी , सौंदर्यीकरण के किसी भी आडम्बर से कोसों दूर , सर्वस्व समर्पिता माँ के दिव्य गुणों को उकेरती बहुत खुबसुरत रचना सधू जी | आज खूब कमाया भी जा रहा है पर बचाया नहीं जा रहा |और उन सुघड़ हाथों की वो बरकत क्या थी - ये प्रश्न अनुत्तरित है | आपने उन भावों को अभिव्यक्ति दी है जो अक्सर मैं अपनी माँ और सास के बारे में सोचा करती हूँ |सस्नेह शुभकामनाएं और आभार एक अत्यंत भावपूर्ण सृजन के लिए |

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    1. हृदयतल से निकला शब्द
      हृदयतल तक पहुँच गए
      सादर

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  5. चित्र बहुत प्यारा संलग्न किया है आपने |

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  6. आज कई नयी साड़ियाँ हैं मेरे पास
    पर तेरे उस अंतिम अनमोल साड़ी में मिले
    मुझे गहरे सुकुन का एहसास----
    एक गहरे सुकुन का एहसास---,,,।बहुत सुंदर रचना माँ के लिए,शायद हर बेटी के पास मॉं की साड़ी आख़िरी निशानी के रूप में होती ही है ।

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  7. सुन्दर प्रस्तुति

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  8. सच में ... एक गहरे सुकून का अहसास । बहुत सुन्दर ।

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  9. आपकी इस कविता को सादर नमन

    ख़ूबसूरत तन-मन लिए
    पर न पार्लर, न फ़ालतू ख़र्च का आडंबर
    न ही लूटना था कोई नाम
    माँगभर सिंदूर,भरहाथ चूड़ियाँ
    न चटोर,न धृष्ट,न हीं जवाबदेह
    शांत,शालीन,दिनभर करती काम

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  10. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  11. हार्दिक आभार।
    सादर।

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  12. हार्दिक आभार।
    सादर।

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  13. बहुत सराहनीय अमूल्य रचना

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