Thursday, 15 October 2020

हो गयी दया विलुप्त

हो गयी दया विलुप्त,देवी के देश में
हैं बेटे जिनके घूमते,
दरिद्रों के वेश में।
दया लुप्त हो रही ------
क्षुधार्त बिलबिला रहे 
तरस रहे तड़प रहे 

और तुम....
राह के किनारे 
मारते चटकारे
खा रहे गिरा रहे 
आधे -अधूरे...

और वे आँखों से पेट भरते
नाक से हैं सूंघते------
है गड्ढे पड़े गालों पे 
और---
धंसे हैं पेट- पीठ में
कर रहे  हैं तृप्त ये ,होठ अपने चाटके
लबलबाते चीभ इनके , जूठन को ताकते।
 
ओह...
हो गयी दया विलुप्त
देवी के देश में
हैं बेटे जिनके घूमते
दरिद्रों के वेश में।

नम आँखों से माता , कहती है रुधकर---
मेरी प्रतिमा से पहले 
ध्यान दो इनके भूख पर

मेरी प्रतिमा से पहले 
ध्यान दो इनके भूख पर

'जय माँ भैरवी असुर भयाउनी'🙏🙏🙏

।।सधु।।

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 17 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जय माता की
    नवरात्रि की शुभकामनाएं

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  3. धन्यवाद एवं आभार माननीय

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  4. और वे आँखों से पेट भरते
    नाक से हैं सूंघते------
    है गड्ढे पड़े गालों पे
    और---
    धंसे हैं पेट- पीठ में
    कर रहे हैं तृप्त ये ,होठ अपने चाटके
    लबलबाते चीभ इनके , जूठन को ताकते।

    दुखद वास्तविकता को प्रस्तुत करती
    उत्कृष्ट रचना

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