Friday, 13 November 2020

ये नाज़ुक दौर नाज़ुक को फ़ौलाद बना देती है


ये नाज़ुक दौर भी न 
नाज़ुक को 
फ़ौलाद बना देती है।

शीशे को चट्टान 
बना देती है 
धरती को 
आसमान बना देती है।
भूले को 
घर का राह दिखाकर 
भटके को 
इंसान बना देती है।

ये नाज़ुक दौर भी न 
नाज़ुक को 
फ़ौलाद बना देती है।

इस जिंदगी की दौड़ में 
जीवन का भ्रम मिटा देती है

हैसियत से अधिक
दिखने वाले इंसान को 
कर्ज़ में डूबा देती है।

ज़्यादा पश्चिम-पश्चिम 
करने वाले का 
सूर्य अस्त भी करा देती है। 

ये नाज़ुक दौर भी न 
नाज़ुक को 
फ़ौलाद बना देती है।

।।सधु।। 



16 comments:

  1. शीशे को चट्टान
    बना देती है
    धरती को
    आसमान बना देती है।
    भूले को
    घर का राह दिखाकर
    भटके को
    इंसान बना देती है।
    बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
  2. हैसियत से अधिक
    दिखने वाले इंसान को
    कर्ज़ में डूबा देती है।

    ज़्यादा पश्चिम-पश्चिम
    करने वाले का
    सूर्य अस्त भी करा देती है।
    वाह!सत्य वचन

    ReplyDelete
  3. मेरी लिखी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा
    करने हेतु आभार।
    सादर।

    ReplyDelete
  4. शुभ हो दीपोत्सव सभी के लिये मंगलकामनाएं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको भी अशेष शुभकामनाएँ माननीय

      Delete

  5. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।लाजवाब रचना - - नमन सह।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार
      आपको भी अशेष शुभकामनाएँ माननीय

      Delete
  6. ज़्यादा पश्चिम-पश्चिम
    करने वाले का
    सूर्य अस्त भी करा देती है।

    ये नाज़ुक दौर भी न
    नाज़ुक को
    फ़ौलाद बना देती है।
    –सच्ची भावाभिव्यक्ति
    –दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  7. आभार
    आपको भी अशेष शुभकामनाएँ दी

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर लेखन

    ReplyDelete
  9. हार्दिक आभार माननीय।
    सादर।

    ReplyDelete
  10. हार्दिक आभार माननीय।
    सादर।

    ReplyDelete