Wednesday, 18 November 2020

अनसुलझे व्यक्तित्व

ज्ञान देना गीता का  तो, सरल है  
पर खुद में उतारना बड़ा कठिन है।
हमारे आस पास डिग्री रहित ऐसे कई डॉक्टर, इंजीनियर, कथावाचक, समाज सेवक मिल जाएंगे।

यथार्थ महाभारत को तो सब ने माना है 
पर घर पर उसे रखना बड़ा कठिन है।
कौन चाहता है कि भगत सिंह उसके घर पर पैदा हो पड़ोसी के घर पर होना ही उचित है।

रामायण को घर पर रखने की चाहत तो सबकी है
पर उसे जीवन में उतारना बड़ा कठिन है । 
दोहरा जीवन जीने वाले इन लोगों का 
सामान्य जीवन जीना भी बहुत कठिन है।

हर पुरुष की इच्छा सीता को पाने की होती 
पर स्वयं राम बन जाना बड़ा कठिन है। 
अवघड़-दानी शिव की कल्पना हर स्त्री की होती  
पर स्वयं माँ गौरी बन जाना बड़ा कठिन है।
तो चलो इन कठिनाइयों से दूर हो जाए 
जैसे हैं वैसे की ही स्वीकृति पाएँ ।

दूसरों के साथ स्वयं में भी 
स्वीकार करने की परंपरा लाए 
अपने कठिन अनसुलझे व्यक्तित्व को
 सरल सुलझा हुआ बनाएँ।



शुभकामनाएँ 
प्रातर्वन्दन🙏🙏🙏
।।सधु।।

17 comments:

  1. रामायण को घर पर रखने की चाहत तो सबकी है
    पर उसे जीवन में उतारना बड़ा कठिन है ।
    दोहरा जीवन जीने वाले इन लोगों का
    सामान्य जीवन जीना भी बहुत कठिन है।...सत्यता को वर्णित करतीं पंक्तियाँ..।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी
      सादर

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  2. मेरी लिखी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा
    करने हेतु आभार।
    सादर।

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  3. हर पुरुष की इच्छा सीता को पाने की होती
    पर स्वयं राम बन जाना बड़ा कठिन है। वास्तविकता के परतों को सुंदरता व सहजता से खोलती भावपूर्ण रचना मुग्ध करती है - - नमन सह।

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    1. हार्दिक आभार माननीय
      सादर

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  4. कथनी और करनी कभी एक समान नहीं होती. इसलिए जैसे हैं वैसे ही खुद को भी स्वीकारें और दूसरों को भी. बहुत सही लिखा आपने.

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    1. हार्दिक आभार महोदया
      सादर

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  5. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 20-11-2020) को "चलना हमारा काम है" (चर्चा अंक- 3891 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. मेरी प्रविष्टि को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार
      महोदया

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  6. प्रेरक एवं भावपूर्ण सुंदर रचना.....

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    1. हार्दिक आभार महोदया
      सादर

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  7. सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार महोदय
      सादर

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