Friday, 4 December 2020

बहुमान्य किंवदंती है वाल्मीकि दस्युकर्मकार(डाकू) थे....!

आदिकाव्य रामायण के रचनाकार वाल्मीकि के विषय में बहुमान्य किंवदंती है कि रत्नाकर डाकू ने नारद मुनि के मार्गदर्शन में दस्युकर्म(डकैती करना)छोड़ एकान्तवास में मरा-मरा कहना शुरुकर दिया जिसे वह राम-राम जपते थें।
लेकिन रामायण में स्वयं वाल्मीकि जी ने लिखा है कि-

प्रचेतसोहं दशमाः 
पुत्रो रघवनंदन ।
मनसाकर्मणा वाचा,
भूतपूर्व न किल्विषम।।
हे राम मैं प्रचेता मुनि का दसवां पुत्र हूँ और राम मैने अपने जीवन में कभी पापाचार कार्य नहीं किया है।
          विचारणीय जिसका पिता स्वयं एक ऋषि हो उसकी संतान भरण-पोषण हेतु डाकू कैसे बन सकता है!!!
अतः दस्युकर्मकार की यह कथा यहाँ खंडित होती है।ये मिथ्या किंवदंतियाँ कितनी भ्रमित व प्रश्नचिह्न खींचतीं हैं न!!!

।।सधु चन्द्र।। 

चित्र - साभार गूगल

8 comments:

  1. सही कहा है आपने सधु जी ..इस तरह की किंवदंतियाँ हमेशा भ्रमित करती हैं..रोचक जानकारी ..।

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    1. हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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  3. दुर्भाग्य से इस देश में अपने पुरातन साहित्य पर शोध की बौद्धिक परंपरा नहीं पनप पायी। गुलामी का भूत इतिहासकारों से नहीं उतरा तो अब विज्ञान क्षेत्र के लोग अपनी वस्तुनिष्ठ शोध दृष्टि के साथ आ रहे हैं।

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    1. निश्चय ही माननीय।
      सादर।

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  4. बिलकुल सच कहा आपने |पता नहीं इन प्रश्नों पर कभी विचार क्यों नहीं हुआ ?

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  5. जी दुर्भाग्यपूर्ण है । सादर।

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