Thursday, 7 January 2021

टूटने और बिखरे की परिभाषा हमेशा 'समाप्त' होना नहीं होता

टूटने और बिखरे की परिभाषा 
हमेशा 'समाप्त' होना नहीं होता ।
कभी -कभी टूटने और बिखरे से 
जीवन का 'आरंभ' भी होता है।।

नदी की राह में 
चट्टान के गिर जाने से 
रास्ता बंद नहीं हुआ करता ।
कभी-कभी 
रुख मोड़ कर भी 
राह निकल जाया करती है।।

यह ना समझना कि 
यह 'अनंत
स्वयं  ही प्रभावी बना है...
हर बार 'अंत' ने 
इसे सहारा दिया है।।

।।सधु चन्द्र।। 

चित्र-साभार गूगल 

10 comments:

  1. वाह! समाप्त और आरंभ। अनंत को अंत का सहारा! विचारणीय के साथ-साथ अति भावप्रवण।

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  2. निराशा में आशा का संचार करती सारगर्भित कृति..

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  3. सारगर्भित विचार सधु जी👌👌

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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