होता मानव ज्ञानी ।
विनय-विवेक-नम्रता बिन
कहलाता अभिमानी ।।
अतः ....
स्वाभिमान होना चाहिए
न कि अभिमान होना चाहिए ।
"प्रशंसा" सिर झुका कर
विनम्रता से स्वीकार हो।
किंतु... आलोचना पर भी
गंभीरता से विचार हो ।
क्योंकि!!!
आलोचना...
परिष्कृत स्थान देती है ,
तभी श्रद्धा...
ज्ञान देती है ।
नम्रता...
मान देती है एवं
योग्यता...
आपको एक स्थान देती है।।
।।सधु चन्द्र।।
बहुत सटीक विश्लेषण सधु जी, पर प्रशंसा और चाटुकारिता के युग में आलोचक सर्वत्र निंदा का पात्र बनते। कभी तो ये बात कही जाती थी----
ReplyDeleteनिंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छाबाय!!
हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹
हार्दिक आभार रेणु जी।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
हार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
सही बात है!स्वाभिमान ही सही है। सार्थक सृजन। आपको शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
पूर्ण सहमति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
जी बहुत रचना है...। खूब बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
आलोचना...
ReplyDeleteपरिष्कृत स्थान देती है ,
तभी श्रद्धा...
ज्ञान देती है ।
नम्रता...
मान देती है एवं
योग्यता...
आपको एक स्थान देती है।----- बहुत बहुत सुन्दर सटीक रचना |
हार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
हार्दिक आभार श्वेता जी ।
ReplyDeleteसादर।
सुंदर एवम सार्थक भावाभिव्यक्ति,संदेशपूर्ण कृति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सुन्दर विश्लेषण
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
प्रशंसा" सिर झुका कर
ReplyDeleteविनम्रता से स्वीकार हो।
किंतु... आलोचना पर भी
गंभीरता से विचार हो ।
सटीक बात कहीं है , ज़रा सी आलोचना से लोग मंथन न कर दंगल कर देते हैं ।
स्वयं पर अभिमान में भी बुराई नहीं बस उसमें अहंकार का समावेश न हो ।।
सुंदर सीख देती रचना ।
हार्दिक आभार दी ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी ।
Deleteसादर।
नम्रता...
ReplyDeleteमान देती है एवं
योग्यता...
आपको एक स्थान देती है।।
सही कहा है आपने...
बहुत अच्छी और दमदार कविता सधु जी 🙏
हार्दिक आभार दी ।
Deleteसादर।