Thursday, 8 April 2021

मेरा लहज़ा

 
परवरिश और लहज़े में 
अन्योन्याश्रय का संबंध है।

परवरिश मानो पानी 
जैसा पिए वैसा लहज़ा/वैसी वाणी।

यह लहज़ा ही है जो 
आपको 
किसी से दूर ले जाता है ।
यह लहज़ा ही है जो 
आपको 
किसी के करीब लाता है ।।

लोग पसंद करते हैं 
नापसंद करते हैं। 
करीब होते हैं या 
दूर से नमस्कार करते हैं ।।

लहज़ा ही है 
जो ज़ेहन में बस जाता है
चित्रकार के उकेरे चित्र सा 
पन्ने से चिपक जाता है।।

मेरा लहज़ा  ही था
जो उसकी
ज़हन में बस गया ।
बदले में जो चंद शब्द
उसने दिए
ताउम्र मेरी कलम में
वह कविता बन
बस गया।।

।।सधु चन्द्र।।

चित्र- साभार गूगल

12 comments:

  1. मेरा लहज़ा ही था
    जो उसकी
    ज़हन में बस गया ।
    बदले में जो चंद शब्द
    उसने दिए
    ताउम्र मेरी कलम में
    वह कविता बन
    बस गया।।
    ...बहुत खूब लिखा है आपने। बोलने की एक शैली, आपकी अलग पहचान बना देती है।।।। किसी को अपनी ओर आकर्षित कर जाती है।

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  2. बहुत सही अभिव्यक्ति।

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  3. पढ़कर स्तब्ध रह गया हूँ सधु जी। ऐसा लगता है, जैसे मेरे ही मन की बात कही गई हो।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-०४-२०२१) को 'एक चोट की मन:स्थिति में ...'(चर्चा अंक- ४०३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।

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  5. बिलकुल सही सटीक । बहुत सुन्दर रचना ।

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  6. विचारोत्तेजक सृजन ।
    सटीक सार्थक।

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  7. बिल्कुल सही अभिव्यक्ति

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  8. बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  9. ताउम्र मेरी कलम में
    वह कविता बन
    बस गया.... अतिसुंदर रचना

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