परवरिश और लहज़े में
अन्योन्याश्रय का संबंध है।
परवरिश मानो पानी
जैसा पिए वैसा लहज़ा/वैसी वाणी।
यह लहज़ा ही है जो
आपको
किसी से दूर ले जाता है ।
यह लहज़ा ही है जो
आपको
किसी के करीब लाता है ।।
लोग पसंद करते हैं
नापसंद करते हैं।
करीब होते हैं या
दूर से नमस्कार करते हैं ।।
लहज़ा ही है
जो ज़ेहन में बस जाता है
चित्रकार के उकेरे चित्र सा
पन्ने से चिपक जाता है।।
मेरा लहज़ा ही था
जो उसकी
ज़हन में बस गया ।
बदले में जो चंद शब्द
उसने दिए
ताउम्र मेरी कलम में
वह कविता बन
बस गया।।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र- साभार गूगल
👌👌👌👌
ReplyDeleteमेरा लहज़ा ही था
ReplyDeleteजो उसकी
ज़हन में बस गया ।
बदले में जो चंद शब्द
उसने दिए
ताउम्र मेरी कलम में
वह कविता बन
बस गया।।
...बहुत खूब लिखा है आपने। बोलने की एक शैली, आपकी अलग पहचान बना देती है।।।। किसी को अपनी ओर आकर्षित कर जाती है।
बहुत सही अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteबधाई हो आपको।
पढ़कर स्तब्ध रह गया हूँ सधु जी। ऐसा लगता है, जैसे मेरे ही मन की बात कही गई हो।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-०४-२०२१) को 'एक चोट की मन:स्थिति में ...'(चर्चा अंक- ४०३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
बिलकुल सही सटीक । बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteविचारोत्तेजक सृजन ।
ReplyDeleteसटीक सार्थक।
बिल्कुल सही अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteताउम्र मेरी कलम में
ReplyDeleteवह कविता बन
बस गया.... अतिसुंदर रचना
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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