_____________________
मिट्टी को मिट्टी से,परम्पराओं से, संबंधों से जोड़ने वाला, छठ पर्व चैत्र कृष्णपक्ष तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक महान ,आस्थावान हिन्दू पर्व है।(समान्यतः मानता/संकल्प पूरी होने पर लोग चैती छठ का का अनुष्ठान करते हैं।) सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार,झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं।धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है।
नामकरण
__________
छठ पर्व में 'छठ' षष्ठ का अपभ्रंश है। छठ पर्व चैत्र कृष्णपक्ष तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है अतः षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा।
छठमहापर्व का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
_________________________
छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है।
छठ महाव्रत को लेकर रामायण महाभारत एवं पुराणों में भी कई कथाएं प्रचलित हैं-
पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी
_______________________________
कहा जाता है कि राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने संतान की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र मरा हुआ पैदा होने से दुखी प्रियंवद मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में अपनी जान देने लगे। उसी समय भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वह सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वह षष्ठी कहलाती हैं। षष्ठी ने राजा प्रियंवद से पूजा करने की बात की। व्रत के बाद राजा का पुत्र जीवित हो गया। षष्ठी के प्रेरणा से राजा का पुत्र जीवित हुआ था तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पूजा होती है। जिसे अब छठ पूजा के नाम से जाना जाता है।
रामायण कालीन छठ कथा
______________________
एक कथा राम-सीता से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेशपर राज सूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया जिसे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थीं।
महाभारत कालीन छठ कथा
_______________________
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व महाभारत काल में हुई थी, जिसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था ।
भाई-बहन का संबंध हैं सूर्य व षष्ठी का
_______________________________
लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई सबसे बड़े पर्व दीपावली को पर्वों की माला माना जाता है। पांच दिन तक चलने वाला यह पर्व सिर्फ भैयादूज तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्व छठ पर्व तक चलता है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला यह पर्व बेहद अहम पर्व है, जो पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। छठ पर्व केवल एक पर्व नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय खास से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक अलग ऐतिहासिक महत्व है ।
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी 'उषा' और 'प्रत्यूसा' हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है ।इन चारों दिनों गीतों के साथ हीं पूजा अर्चना की जाती है जिसमें प्रमुख हैं
*केलवा जे फरेला घवद से
*ओह पर सुगा मेड़रायकाँच ही बाँस के बहंगिया
*बहंगी लचकत जाए
*सेविले चरन तोहार हे छठी मइया
*महिमा तोहर अपार
*उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर
*निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे
*चार कोना के पोखरवा
*हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।
आस्था के अनमोल चार दिन
_______________________
चतुर्थी – पहला दिन (नहाय खाय ) व्रती नदी में पवित्र स्नान करते हैं और वहां से कुछ पानी एक पात्र में अपने घर, अन्य सामग्री बनाने के लिए लेकर आते हैं। वे अपने घर के आस-पास को साफ़-सुथरा रखते हैं और दिन में एक बार कद्दू-भात भोजन खा कर महापर्व छठ की शुरुआत करते हैं। खाना किसी भी पीतल और मिट्टी के बर्तनों में तथा मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी की मदद से बना होता है।
पंचमी – दूसरा दिन (लोहंडा और खरना)इस दिन भक्त पूरा दिन उपवास करते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं। वे पूजा में रसिआव-खीर, पूरी/रोटी और फल चढा़ते हैं। प्रसाद ग्रहण करने के बाद वे अगले 36 घंटे के लिए बिना पानी पिए उपवास करते हैं।
षष्ठी – तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य )इस दिन यानी की छठ का दिन होता है। इस दिन शाम को नदी के घाट पर सभी भक्त संध्या अर्घ्य भगवान को चढा़ते हैं। इसके बाद वे छठवर्तियाँ हल्दी के रंग का साड़ी पहनती हैं और परिवार के साब लोग मिल कर कोसी की रस्म मनाते हैं जिसमें वे पञ्च गन्ने की छड़ी को अपने दीयों के चारों ओर रखते हैं। पांच गन्ने के छड़ी पंचतत्व (पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष) का रूप माना जाता हैं।
सप्तमी – चौथा दिन (उषा अर्घ्य, परना दिन )इस दिन सभी भक्त अपने परिवार ,संबंधी व मित्रों के संग गंगा / नदी के किनारे उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं। उसके बाद वे अपना व्रत तोड़ते हैं और छठ प्रसाद ग्रहण करते है।
सम्बन्धों को सशक्त करने वाले इस महापर्व में मन की कई गांठें खुल जाती हैं क्योंकि मनोकामनापूरक इस व्रत में परिवार के सभी सदस्यों की अहम भूमिका होती है।
चित्र- साभार गूगल
छठ पर्व का बहुत ही सुंदर चित्रण।
ReplyDelete