Thursday, 22 October 2020

ज़रा आहिस्ता बोलो

 

चापलूसों की है सरकार 
देखो...
ज़रा आहिस्ता बोलो 

जज़्बातों को
को थोड़ा 
नापो -तोलो  
अपनी आवाज़ में 
मधुर ज़हर घोलो 

देखो ...
ज़रा आहिस्ता बोलो ।

चापलूसों की है ये सरकार 
योग्यता है 
यहाँ बेकार ...
ज्ञान व स्तरीयता 
अपनी जेब में टटोलो 🙏

देखो...
ज़रा आहिस्ता बोलो ।

अपने ख़यालात 
खुद ही ढो लो
और...
बदबूदार बाज़ार से आ रही  
इत्र की खुशबू बोलो

देखो...
ज़रा आहिस्ता बोलो।।

बस ...
बस ...
बस ...
तुम्हें पता है न
सूरज को थाली से 
कौन ढक पाया है 
इन नक्षत्रों ने तो बस 
इसे मोहरा बनाया है।

इसलिए 
भाई साहब!!! 
सही कहा है ~~
हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट ।
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥

बाकी आप स्वयं हैं समझदार 😎
।।सधु।। 

चित्र - साभार गूगल 

7 comments:

  1. बहुत खूब. सामायिक रचना.

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  2. धन्यवाद एवं आभार महोदया

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  3. मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार
    सादर

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  4. चापलूसों की है ये सरकार
    योग्यता है
    यहाँ बेकार ...
    ज्ञान व स्तरीयता
    अपनी जेब में टटोलो 🙏

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