Friday, 23 October 2020

माहवारी पैर की बेड़ियां नहीं बल्कि जीवन का एक नया आयाम है


एक बच्ची का  स्त्री के रूप में परिवर्तित होना इतना आसान नहीं होता  वह मानो...    चट्टान पर खेती की तरह है। दरअसल महिलाओं में पीरियड्स छोटी सी बच्ची से युवती बनने का सफर है। 

माहवारी पैर की बेड़ियां नहीं बल्कि जीवन का एक नया आयाम है । यह कोई बीमारी नहीं अपितु एक स्वस्थ महिला के लिए सामान्य प्रक्रिया है कि जो प्राकृतिक है।
 देश के कई क्षेत्रों में इसे बीमारी के रूप में देखा जाता है तो कई स्थानों पर छुआछूत से जोड़कर निषेध करार दिया जाता है । माहवारी को लेकर सोच बदलना जरूरी है क्योंकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है ।सृजन का दूसरा रूप है । 

  माहवारी (पीरियड) के प्रति अंधविश्वास एवं अवधारणा 

महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर आज समाज में कई प्रकार के अंधविश्वास एवं अवधारणा है। पीरियड्स के दौरान वे अशुद्ध मानी जाती हैं ।उनका रसोई एवं पूजा घर में जाना, खाना बनाना, अचार छूना, बिस्तर पर सोना आदि आज भी कई परिवारों में प्रतिबंधित  है। ऐसा माना जाता है कि माहवारी के दौरान मंदिर में प्रवेश से वह अशुद्ध हो जाएगा। यह अंधविश्वास  किसी विशेष राज्य की बात नहीं बल्कि देश के हर कोने में फैला है ।पीरियड के प्रति समाज में कई मिथक है जिसे लेकर समाज में जागरूकता आवश्यक है।
 आज की इस प्रगतिशील दौर में महिलाएँ व युवतियाँ जहाँ एक ओर पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर  देश के उत्थान एवं विकास में अपनी सहयोगिता निभा रही हैं। वहीं दूसरी ओर एक जननी के रूप में भी पारंगत है।

इस सृष्टि  की संरचना में एक नारी /स्त्री /औरत का योगदान पुरुष से कम कहीं नहीं है उसमें भी
  एक बच्ची का  स्त्री के रूप में परिवर्तित होना इतना आसान नहीं होता  वह मानो...    चट्टान पर खेती की तरह है।
जो कि माहवारी (पीरियड) के रूप में होता है, जिसकी शुरुआत आजकल लगभग 9 से 11 वर्ष में ही हो जाती है । जिस उम्र में माता-पिता बच्चों को संभालते हैं, उस उम्र में स्वयं एक बच्ची खुद को संभालने के लिए  किस प्रकार तैयार होती है यह हम समझ सकते हैं अतः  यह जिम्मेदारी उस बच्चे की ही नहीं, माता-पिता की भी है , बड़ों की भी। 
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आखिर क्यों होता है माहवारी

हमारे दिमाग के निचले भाग में मटर के दाने की तरह एक ग्रंथि(Gland) होती है जिसे पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland)कहते हैं। जब बढ़ने का समय आता है तो पीयूष ग्रंथि शरीर के विभिन्न हिस्सों में रसायन छोड़ती है जिसे हम हार्मोंस कहते हैं जिसके कारण हम कई प्रकार के शारीरिक एवं भावनात्मक बदलाव से गुजरते हैं। पीरियड भी उसी बदलाव का एक भाग है। जिसके दौरान रक्तस्राव होना सामान्य बात है। यह महिला के गर्भाशय की परत के टूटने के कारण होता है। मासिक धर्म, शरीर के गर्भावस्था के लिए तैयार होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इस दौरान ऐसा लगता है कि बहुत खून निकल रहा है, पर ऐसा होता नहीं है। मासिक रक्तस्राव में खून के साथ गर्भाशय (यूट्रस) की परत के ऊतक निकलते हैं।
 एक महिला के लिए   मासिक धर्म (पीरियड्स) का समय बहुत ही असुविधा भरा होता है। क्योंकि इस दौरान उसके शरीर में हार्मोन के उतार चढ़ाव होते हैं, अतः इस बारे में जागरूकता की बेहद  आवश्यकता है ताकि टीनेज लड़कियाँ साफ़-सफ़ाई पर ध्यान दे सके  एवं अपने स्वास्थ का ख्याल रख सकें।

*भारत में 70% लड़कियाँ माहवारी के अभावग्रस्त समस्याओं से जूझती है। 

*20 करोड़ सुरक्षा एवं स्वच्छता से अनभिज्ञ है।

*ये महिलाएँ प्रयोग करती हैं राख, लकड़ी का छीलन, सूखी पत्तियाँ, अखबार, गंदे कपड़े, पुआल और यहाँ तक की प्लास्टिक की थैली भी ।

 एम एच ए आई के अनुसार लगभग 336 मिलियन माहवारी महिलाओं में मात्र 36% ही डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन का प्रयोग करती हैं जो कि 121 मिलियन है।

यह सोचनीय है इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 28 मई को केंद्र सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की सुविधा एवं स्वच्छता पर ध्यान रखते हुए बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स लाँच किया जिसकी कीमत प्रति पैड ढा़ई रुपए है इसे प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना केंद्र से खरीदा जा सकता है।

एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम केवल चीजों का उपयोग न करें बल्कि हमें यह भी ध्यान होना चाहिए कि हम जिन चीजों का प्रयोग कर रहे हैं उसका बुरा प्रभाव हम पर या पर्यावरण पर तो नहीं पड़ रहा । 

लेख - सधु चन्द्र

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