Monday, 30 November 2020

अनर्थ को ललकारने से बचना


                   

                       
हूँ सहनशील पर,                       
इतना नहीं कि
राह के पाषाण की तरह
कोई ठोकर मार दे...
और,
ढलमलाते 
एक कोने से...
दूसरे कोने में जा गिरे...।

है धैर्य बेहद मूल्यों का
पर, 
इतना नहीं कि;
समक्षी 
अपनी नैतिकता गटक जाए
और ताकते मुंह रह जाएं
चिर -चिरंतर तक।

है प्रवृति खुशमिजाज
सहृदय  सी 
पर,
इतना नहीं कि;
धृष्टों की धृष्टता पर
झूठी हंसी आए।
मित्रवत् व्यवहार किया जाए

दोमुहें सांपो के भीड़ में खड़ी,
लिए कटोरा दूध का
पर खबरदार!!!
अनर्थ को ललकारने से बचना।

हूँ नम्र पर 
इतना नहीं कि
नरम समझकर
खीरे- ककरी की तरह 
चबा जाओ.....
..........................................
पैर के नीचे से 
ज़मीन खीचनें की 
औका़त हम रखते हैं।

।।सधु चन्द्र।।

22 comments:

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    1. हार्दिक आभार विश्वमोहन जी।
      सादर।

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  2. नम्र हूँ पर इतनी भी नहीं कि ककड़ी समझकर चबा जाओ ...क्या बात है

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  3. हार्दिक आभार महोदया ।
    सादर।

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  4. धृष्टों की धृष्टता पर
    झूठी हंसी आए।
    मित्रवत् व्यवहार किया जाए ।
    'शठे शाठ्यं समाचरेत'
    सुन्दर।

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  5. हार्दिक आभार महोदय।
    सादर।

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  6. अच्छी चिंतनशील और प्रेरक रचना। साधुवाद सधु जी।

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    1. विश्लेषण हेतु हार्दिक आभार महोदय।
      सादर।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद पर...
      साझा करने हेतु हार्दिक आभार श्वेता जी
      सादर।

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  8. बहुत सुन्दर।
    गुरु नानक देव जयन्ती
    और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. हार्दिक आभार महोदय।
      आपको भी गुरु नानक देव जयन्ती
      और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
      सादर।

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  9. वाह !बहुत सुंदर सृजन।

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    1. धन्यवाद अनीता जी ।
      सादर।

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  10. बहुत बहुत सुन्दर , सराहनीय |

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  11. जबर्दस्त ! ऐसा ही होना चाहिए।

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