Tuesday, 23 February 2021

कारपोरल पनिशमेंट वर्जित

मनुष्य और पशु में 
बड़ा अंतर है 
हिंसा-अहिंसा का।

जहाँ मनुष्य वाणी से 
भावनाओं को अभिव्यक्त करता है, 
वही पशु हिंसा द्वारा ।

सुना है आपके पास पर्याप्त डिग्रियाँ हैं
और मनुष्य के रूप में भी 
अवतार लिया है आपने 
जो कि सृष्टि का 
बुद्धिमान जीव कहलाता है ।

यदि पेड़-पौधों के पास 
पर्याप्त फल हो तो वे 
लदकर झुक जाते हैं 
समर्पित हो जाते हैं ।

कुएं में पर्याप्त पानी हो तो वह 
आपकी पहुंच तक आ जाता है ।
नदियों में पर्याप्त जल हो तो 
खेत-खलिहान लहलहाने लगते हैं।

ख़ुद को योग्य समझने वाले 
क्या लाभ आपके ज्ञान का !!!
जब अंधकार में 
प्रकाश न पहुंचे
और बच्चे आतंकित हों आपके कोप से...।

शिक्षक रोल मॉडल होते हैं उनका  एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होना चाहिए बच्चों में ज्ञान बांटना न कि शारीरिक दंड बांटना। ज्ञान बढ़ाइए कोप नहीं।

।।केवल अपवाद रुपी शिक्षक के लिए।।

।।सधु चंद्र।।
 चित्र - साभार गूगल




25 comments:

  1. दरअसल कुछ शिक्षक इस मानसिकता के होते हैं कि उन्हें लगता है कि शारीरिक दण्ड से ही छात्र के शैक्षिक अधिगम में सुधार हो सकता है। कहीं-कहीं तो अभिभावक भी शिक्षकों को शारीरिक दण्ड देने हेतु प्रोत्साहित करते हैं।
    बहरहाल अपनी रचना द्वारा बहुत अच्छा और विमर्शशील मुद्दा उठाया आपने।

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  2. बिल्कुल सही कहा आपने, बच्चा डरता ही रहेगा,फिर वो सीखेगा ,बहुत ही अच्छी रचना है ।

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  3. बहुत सही कहा महोदया।
    शिक्षाजगत पूज्य स्थल है जहाँ केवल ज्ञान की पूजा होनी चाहिए।कुछ एक दो लोग ऐसे हैं जिनकी वजह से महिमा धूमिल होती है।
    सादर नमन मार्गदर्शन हेतु।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०२-२०२१) को 'असर अब गहरा होगा' (चर्चा अंक-३९८८) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार अनीता जी ।
      सादर।

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  5. सार्थक संदेश देती रचना के लिए आपको बधाई। शायद कुछ लोगों में बच्चों को प्यार से पढ़ाने की स्किल ही नहीं होती।

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  6. "भय बिनु प्रीत न होय " की मानसिकता ही शिक्षक वर्ग में यह अमानवीय व्यवहार का कारण है ,या फिर गुस्से का शिकार।
    षर हर हालत में यह बहुत दुखद है।
    सार्थक लेख।

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  7. ख़ुद को योग्य समझने वाले
    क्या लाभ आपके ज्ञान का !!!
    जब अंधकार में
    प्रकाश न पहुंचे
    और बच्चे आतंकित हों आपके कोप से...।

    आज कल तो शिक्षक का प्रकोप कहाँ ? शिक्षक ही डरते बेचारे ।

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    1. आपके विचार से सहमत ।
      समय के साथ हालात बदले हैं सोच बदली है विचार बदले हैं अभिभावक शिक्षक और बच्चे भी बदले हैं पर कुछ अपवाद स्वरूप शिक्षक अभी भी हाथ साफ करने में पीछे नहीं हटते दी।

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  8. "शिक्षक रोल मॉडल होते हैं उनका एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होना चाहिए बच्चों में ज्ञान बांटना न कि शारीरिक दंड बांटना। ज्ञान बढ़ाइए कोप नहीं।"
    सार्थक संदेश देती बेहतरीन सृजन।
    मगर," आज कल तो शिक्षक का प्रकोप कहाँ ? शिक्षक ही डरते बेचारे।" सविता जी की इस कथन से भी सहमत हूँ। मेरे पति भी शिक्षक है और हमारा अनुभव भी यही कहता है। आज जो ये उलटे हालत हो रखें है इससे भी डर लगता है।

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    1. सहमत।
      कुछ अपवाद रुपी शिक्षक आज भी समाप्त नहीं हुए हैं। कामिनी जी यह बस उन्हीं के लिए है।
      सादर।

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  9. सार्थक सृजन ।

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  10. पूर्णरूप से सहमत हूं आपके विचारों से सधु जी ।

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