महिला के लिए अभिशाप है।
स्त्री विमर्श से बाहर निकलना
इतना आसान नहीं...
यह अच्छा है वह बूरा
काम करने की जरूरत क्या है!!!
पति की इनकम तो इतनी अच्छी है
तुम्हें क्या जरूरत आन पड़ी !!!
किस चीज कमी है!!
जो घर से बाहर निकल पड़ी ।।
वह सब तो सही है ...
पर... एक महिला ही समझ सकती है
महिला के दिल के हालात...
जब जरूरत पड़ती है तो
फैलाना पड़ता है हाथ।
भाई साहब!
बिना वेतन के
24 घंटे का काम नहीं दिखता
बस... क्या करती हो!!!
यही ध्वनि कान में बार-बार है गूंजता।।
।।सधु चन्द्र।।
काफ़ी हद तक आपकी यह बात ठीक है सधु जी ।
ReplyDeleteआपकी यह सोंच तार्किक रूप से कुछ सही प्रतीत होती है। पर, मेरी समझ से धनात्मक निर्णय न ले पाने की क्षमता हमें कमजोर बनाती है। आवश्यक है शिक्षित होते हुए, विनम्र भी रहा जाय। धन / लक्ष्मी तो, सरस्वती के पीछे-पीछे भागती है।
ReplyDeleteवर्ना, हमनें तो पढे-लिखे, धन-सम्पन्न घरों को ही टूटते देखा है।
शुभकामनाएँ ....
सार्थक
ReplyDeleteआपकी चिंता सही है। आपका सवाल भी अपनी जगह सही है। सम्मान के साथ जीवन जीने के लिए आर्थिक रूप से सशक्त होना बहुत जरूरी है। बड़े घरों की कुछ महिलाएँ जरूर कुछ हद आत्मनिर्भर होती हैं। लेकिन निम्न मध्य आय वर्ग में ज्यादातर महिलाएँ आर्थिक रूप से कमज़ोर ही होती हैं।
ReplyDelete