एक ऐसा अंग जो...
चलता है
चलाता भी।
जगता है
सोता भी।
गर्म भी होता है
ठंडा भी ।
अच्छा होता है
खराब भी ।
खाया भी जा सकता है
चाटा भी ।
खुलता भी है
बंद भी ।
और तो और
बत्ती भी जलती है
जमता है दही भी 😜😜😜
यह दिमाग ही है जो
आवेश को
नियंत्रण में रखता है ।
पर प्रयोग न करने पर
दीमक भी लगता है।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र साभार- गूगल
वाह,बहुत सुंदर सार्थक व्याख्या दिमाग की ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 01 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह से लिखा है आपने एक अनूठे विषय को।
ReplyDeleteपढ़ने में भी दिमाग लग गया!
ReplyDeleteबहुत खूब,"दिमाग" की हर परत खोल दी आपने ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteआपने लिखने में दिमाग़ लगाया, हमने पढ़ने में।
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