हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी
हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी
ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र
आखिरी साँस तक बेक़रार आदमी
-निदा फ़ाज़ली
Wah
ReplyDeleteसादर
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद सधु जी, निदा फ़ाज़ली जी की इतनी बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए 🙏🌷🌷
ReplyDeleteहर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
ReplyDeleteफिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
👌👌🙏🙏
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी
आभार रेणु जी
Delete