महाकार हो।
चीटियाँ तो बस
पैरों तले
यूँ ही मसल जाती हैं ।
क्या तुलना
तुम्हारी किसी से
तुम्हारे सद्गुणों का दर्प ही है
जो ब्रह्मांड में
वफ़ादारी की मिसाल लिए
कुक्कुरों को उकसाता है ।
भौंकने के लिए
तुम्हें विक्षिप्त करने के लिए
उद्वेलित करने के लिए।
गधों और खच्चरों की जमात में
जंगली समाज के सामाजिक तत्व
सुधर जाओ कि...
शिकार हो रहा हाथियों का
केवल राजयोग ही
जीवन भर नहीं चलता
काबिलियत भी चाहिए
जीवन बिताने के लिए।
बेशक ही चींटी
कद-काठी से तुच्छ है
पर पचास गुना वजन उठाने में
वह तुमसे कहीं अधिक उच्च है।
विडंबना...
जहाँ तुम अक्षम...
वहाँ वह सक्षम है ।
अनुसरण करना
कोई उनसे सीखे
प्रेम-सौहार्द
कोई उनसे सीखे
यह चींटी ही है जो
पात पर लगे भोजन को
ना अकेले भोग लगाती है
'वसुधैव कुटुम्बकम् ' का पाठ
यह जाति ...
अकेले सिद्ध कर जाती है ।
घायल पड़ी चींटी यूँ
लावारिस नहीं पाई जाती ।
बरखुरदार के कंधे पर...
यह, सहानुभूति के साथ
ढोई जाती है
क्या तुलना!
चींटी और हाथी में...
..........................................
सारे रौब मिट्टी में ही मिल जाते है।
।।सधु।।
(टिप्पणी- मैं हाथी प्रजाति के प्रति अत्यधिक
संवेदनशील हूँ। यहाँ हाथी 🐘 मात्र संकेतार्थ है। सादर।)
अनुपम रचना। किसी स्व-सिद्ध, स्वयंभू महान को आईना दिखाती बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteसाधुवाद आदरणीया सधु जी।
हार्दिक आभार माननीय
Deleteसादर
हार्दिक आभार श्वेता जी
ReplyDeleteसादर
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 27-11-2020) को "लहरों के साथ रहे कोई ।" (चर्चा अंक- 3898) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
चर्चा अंक में मेरी रचना शामिल करने हेतु हार्दिक आभार महोदया।
Deleteसादर।
प्रकृति के बहाने समाज के यथार्थ का वर्णन
ReplyDeleteसादर नमन
ReplyDeleteउपयोगी और प्रेरक।
ReplyDeleteहार्दिक आभार महोदय
Deleteसादर
मर्मस्पर्शी और सार्थक संदेश देती पोस्ट।
ReplyDeleteहार्दिक आभार महोदय
Deleteसादर
केवल राजयोग ही
ReplyDeleteजीवन भर नहीं चलता
काबिलियत भी चाहिए
जीवन बिताने के लिए।
B
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ReplyDeleteव्यर्थ दर्प को आईना दिखा खंडित करती अपनी तरह की आप रचना। बहुत खूब सधु जी👌👌👌 हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹💐💐
ReplyDeleteविश्लेषण हेतु हार्दिक आभार रेणु जी
Deleteसादर
केवल राजयोग ही
ReplyDeleteजीवन भर नहीं चलता
काबिलियत भी चाहिए
जीवन बिताने के लिए।
–सच्चाई.. उम्दा रचना
हार्दिक आभार दी
ReplyDeleteसादर
सार्थक रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार महोदय
Deleteसादर।
सटीक और सुन्दर लेखन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार महोदय
ReplyDeleteसादर
सिर्फ कद काठी मायने नहीं रखती तो कर्म मायने रखते है ऐसा बहुत सुंदर सन्देश देती रचना,सधुचन्द्र दी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी।
ReplyDeleteसादर
घायल पड़ी चींटी यूँ
ReplyDeleteलावारिस नहीं पाई जाती ।
बरखुरदार के कंधे पर...
यह, सहानुभूति के साथ
ढोई जाती है
क्या तुलना!
चींटी और हाथी में...बहुत ही सुंदर सृजन।
हार्दिक आभार अनीता जी।
ReplyDeleteसादर।
बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार अमृता जी ।
Deleteसादर।
बेशक ही चींटी
ReplyDeleteकद-काठी से तुच्छ है
पर पचास गुना वजन उठाने में
वह तुमसे कहीं अधिक उच्च है।
विडंबना...
जहाँ तुम अक्षम...
वहाँ वह सक्षम है ।
बिल्कुल।सहमत।
हार्दिक आभार महोदय।
ReplyDeleteसादर।