Sunday, 29 November 2020

जब हों सब विरुद्ध⏳और आप रफ़्तार में...

जब हों सब विरुद्ध⏳
और आप रफ़्तार में...
तो समझिए कि
मंजिल की ओर ही 
रूख़ है ।

बस रुकना मना है... 
अमावस्या की रात 
जो चल रही 
न मशाल लेकर राह 
दिखाएगा कोई ।

एक ज्योतिपुंज 
जो जल रही है 
भीतर तेरे...
 मझधार में 
बन पतवार 
पार लगाएगा वही ।

तू चल 
ना रुक 
बेड़ियों, जंजीरों को तोड़ 
मंजिल को 
अपनी ओर मोड़ ।

क्या हुआ जो पहली पारी रुक गई
 दूसरी अब भी है बाकी /शेष ।
 होगा यह तेरे लिए विशेष ।।
क्योंकि,               
जहाजें...🛥✈️
विपरीत दिशा को चीरते ही
आगे बढ़ती हैं।
और बढ़ती चली जाती हैं....

।।सधु।। 

10 comments:

  1. जब हों सब विरुद्ध⏳
    और आप रफ़्तार में...
    तो समझिए कि
    मंजिल की ओर ही
    रूख़ है...।बहुत ख़ूब सधु जी ,हर अंतर कुछ न कुछ कहता हुआ..।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
      सादर।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा करने हेतु हार्दिक आभार दी।

      सादर।

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    1. धन्यवाद माननीय।

      सादर।

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  4. जब हों सब विरुद्ध⏳
    और आप रफ़्तार में...
    तो समझिए कि
    मंजिल की ओर ही
    रूख़ है ।
    उत्तम रचना।

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  5. हार्दिक आभार महोदय।
    सादर।

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  6. बहुत सुन्दर।
    गुरु नानक देव जयन्ती
    और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. हार्दिक आभार महोदय।
      आपको भी गुरु नानक देव जयन्ती
      और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
      सादर।

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