और आप रफ़्तार में...
तो समझिए कि
मंजिल की ओर ही
रूख़ है ।
बस रुकना मना है...
अमावस्या की रात
जो चल रही
न मशाल लेकर राह
दिखाएगा कोई ।
एक ज्योतिपुंज
जो जल रही है
भीतर तेरे...
मझधार में
बन पतवार
पार लगाएगा वही ।
तू चल
ना रुक
बेड़ियों, जंजीरों को तोड़
मंजिल को
अपनी ओर मोड़ ।
क्या हुआ जो पहली पारी रुक गई
दूसरी अब भी है बाकी /शेष ।
होगा यह तेरे लिए विशेष ।।
क्योंकि,
जहाजें...🛥✈️
विपरीत दिशा को चीरते ही
आगे बढ़ती हैं।
और बढ़ती चली जाती हैं....
।।सधु।।
जब हों सब विरुद्ध⏳
ReplyDeleteऔर आप रफ़्तार में...
तो समझिए कि
मंजिल की ओर ही
रूख़ है...।बहुत ख़ूब सधु जी ,हर अंतर कुछ न कुछ कहता हुआ..।
हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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Deleteमेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा करने हेतु हार्दिक आभार दी।
सादर।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद माननीय।
Deleteसादर।
जब हों सब विरुद्ध⏳
ReplyDeleteऔर आप रफ़्तार में...
तो समझिए कि
मंजिल की ओर ही
रूख़ है ।
उत्तम रचना।
हार्दिक आभार महोदय।
ReplyDeleteसादर।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteगुरु नानक देव जयन्ती
और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हार्दिक आभार महोदय।
Deleteआपको भी गुरु नानक देव जयन्ती
और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर।