जो कि बा-मुश्किल लोगों को मिली है।
बिन बारिश भी जो खुद को
सूखने ना दे,
पतन होने न दे
उसी का नाम हरियाली है ।
जिसके लिए स्थिरता चाहिए
संयम, ठहराव चाहिए।
भूख इतनी न जगाओ कि ...
झमाझम बारिश में भी
प्यास ना बुझे ...!
अपने भीतर के पानी को
इतना न गिराओ कि
मर्यादा न सूझे...!
वरना ...
सूखे पत्ते की तरह गिर जाओगे ...
और कई लोग हैं
तुम्हारे नक्श-ए-क़दम पर चलने वाले
जो तुम्हें ढेर कर आग लगा जाएंगे।
और तुम खुद को जलता हुआ पाओगे।।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र - साभार गूगल
अनर्गल तृष्णा इंसान का पतन करवाती है.सचेत करती नायाब कृति..
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
अपने भीतर के पानी को
ReplyDeleteइतना न गिराओ कि
मर्यादा न सूझे...!
बहुत सुंदर रचना प्रिय सधु जी।
हार्दिक आभार।
Deleteसादर।
अपने भीतर के पानी को
ReplyDeleteइतना न गिराओ कि
मर्यादा न सूझे...!
वरना ...
सूखे पत्ते की तरह गिर it's to good word
हार्दिक आभार।
Deleteसादर।
अति सुन्दर सृजन - -
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
ज़िंदगी का दूसरा नाम 'जिंदादिली' है।
ReplyDeleteजो कि बा-मुश्किल लोगों को मिली है।
बिन बारिश भी जो खुद को
सूखने ना दे,
पतन होने न दे
उसी का नाम हरियाली है ।
सुंदर, सार्थक रचना.....
हार्दिक आभार।
Deleteसादर।
बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
वाह ! क्या बात है
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
हार्दिक आभार माननीय ।
ReplyDeleteसादर नमन।
हार्दिक आभार माननीय ।
ReplyDeleteसादर नमन।
भूख इतनी न जगाओ कि ...
ReplyDeleteझमाझम बारिश में भी
प्यास ना बुझे ...!
अपने भीतर के पानी को
इतना न गिराओ कि
मर्यादा न सूझे...!
सटीक....
हार्दिक आभार।
Deleteसादर।
उत्कृष्ट कटाक्ष का साक्षात्कार।
ReplyDeleteउम्दा।
हार्दिक आभार।
Deleteसादर।