नशेड़ी ज़िंदगी
ज़िंदगी एक लत है
उस नशे कि...
जो रोज़-रोज़
माँगती है
अपनी ज़रूरतों को ।
हर ज़रूरत नशा नहीं
पर जो ज़रूरत नशा बन जाए
वही लत है।
किसकी क्या ज़रूरत!
यह उससे बेहतर
कौन जाने!
जिसे पूरे करने को
लांघ जाता
वह सारी सीमाएँ...
और मुहैया कराता
अपने उस उपादान को...
जिसने उसे जकड़ रखा है
अपने गिरफ्त में~~
अपने चंगुल में~~
लत कभी बुरी नहीं होती
पर...
केवल लिप्त शख़्स के लिए ।
कुछ लतें अच्छी होती हैं
कुछ सर्वहितकारी बहुत अच्छी
पर...
कुछ सड़ा देती हैं
साथ में बंधे संबंधों को।
कहते हैं कि
नशे में डूबा इंसान
सच बोलता है...
पर मनोभावानुसार...
सबसे अधिक
मिलावटी शब्दभाव
नशे की हालत में ही
बोले जाते हैं
ताकि...
लोग उस पर यक़ीन कर सकें
और वह
गुमराह कर सके लोगों को।
इंसान शब्द जंजाल से
मुक्त होना चाहता है ।
मुक्त होना चाहता है...
उस घुटन से
जो,नशे की हालत में
समक्षी को झकझोर देते हैं।
यह घुटन
किसी अच्छे नशे की ओर संकेत न कर
गर्त में घसीटने का काम करता है ।
(कोशिश करें उत्थान की..
न कि पतन की। )
।।सधु चन्द्र।।
चित्र-साभार गूगल
"कुछ लतें अच्छी होती हैं
ReplyDeleteकुछ बहुत अच्छी
पर...
कुछ सड़ा देती हैं
साथ में बंधे संबंधों को।"
सही बात कही आपने। पूर्णतः सहमत।
हार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।
लत वही जो सर्वहितकारी हो
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
हार्दिक आभार कविता जी।
Deleteसादर।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-12-2020) को "हाड़ कँपाता शीत" (चर्चा अंक-3917) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
मेरी रचना को उत्कृष्ट मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी।
Deleteसादर।
हर ज़रूरत नशा नहीं
ReplyDeleteपर जो ज़रूरत नशा बन जाए
वही लत है।
सत्य कथन..अति सुन्दर सृजन ।
हार्दिक आभार मीना जी।
Deleteसादर।
एक विलक्षण और विचारणीय सत्य को उजागर करती प्रस्तुति। ।।।।।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।
आजकल तो मोबाइल ही लत और नशा हो गया है।
ReplyDeleteआभार।
Deleteसादर।
सटीक और सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
ReplyDeleteसादर।
बहुत गहरी सोच कविता के रूप में उतर आई है
ReplyDeleteसाधुवाद 🍁🙏🍁
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार वर्षा जी।
Deleteसादर।
हरिः ॐ तत्सत्
ReplyDeleteगहरी सोच कविता के रूप में साधुवाद! बहुत ही सुन्दर अभिव्यति
सदर नमन
आचार्य प्रताप
प्रबंध निदेशक
अक्षर वाणी संस्कृत सामाचार पत्रम
उत्साहवर्धन हेतु हृदय तल से आभार माननीय।
Deleteसादर नमन।
बहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार उर्मिला जी।
Deleteसादर ।
तमाम लतों पर एक सार्थक रचना सधु जी, वाह
ReplyDeleteमुक्त होना चाहता है...
उस घुटन से
जो,नशे की हालत में
सामक्षी को झकझोर देते हैं। ...बहुत खूब
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार अलकनंदा जी!
Deleteसादर।
कुछ लतें अच्छी होती हैं
ReplyDeleteकुछ बहुत अच्छी
पर...
कुछ सड़ा देती हैं
साथ में बंधे संबंधों को।
सटीक एवं सुन्दर
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर नमन।
सामयिक रचना बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
ReplyDeleteसादर।
सार्थक सृजन। सुंदर भाव।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।
विचारणीय सत्य
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।
विचारपूर्ण सृजन, बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।