पत्थर वहीं चला करते हैं।
चलना भी चाहिए
क्योंकि...
फलों पर फेंके गए पत्थर
तृप्ति प्रदान करते हैं
किंतु गंदगी में फेंके गए पत्थर
छींटें...
।।सधु चन्द्र।।।
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
राम एक नाम नहीं जीवन का सोपान हैं। दीपावली के टिमटिमाते तारे वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की पवित्र पर...
ठीक कहा आपने
ReplyDeleteसही लिखा है। आपके पाठक आपकी अगली रचना की प्रतिक्षा कर रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
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