उम्र होने से ही
ज्ञान की प्राप्ति हो
या हाथ जला कर ही
अग्नि की अनुभूति हो।
"न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्षयते"
अनुभवशीलता, चिंतनशीलता
एक ऐसी परंपरा है
जो कि अपने अनुभव से
अपने बाल सफेद करते हैं
न की धूप में।
सजने-संवरने
ख़ूबसूरत लगने में
कोई बुराई नहीं
वह तो आकर्षण का केंद्र है ।
पर...
चेहरे को केवल मेकअप से
ढक लेने से कोई
ख़ूबसूरत नहीं होता
और ना ही आकर्षक;
रंगे सियार के आगे
मुंह खोलने से पहले भी
सोचना पड़ता है कि
वह दिल से सुन रहे हैं
या दिमाग से।
जिसमें खुद इतनी मिलावट है
क्या वह शुद्धता को
ग्रहण कर सकेंगे!!!!
वास्तव में आप बेफ़िक्र...
शालीनजनों के साथ होते हैं ।
क्योंकि ...
वास्तविक आकर्षण,अपनत्व
उसकी सादगी, उसकी शालीनता है।
हमारा ज्ञान ,आयु एवं अभ्यास
सभी तब तक शून्य
व उथले हैं
जबतक हममें
वास्तविकता नहीं
शालीनता नहीं
गंभीरता नहीं ।
वजन नहीं।
विनम्रता नहीं।
अतः बाहरी झूठे दिखावेपन से अपने साथ दूसरों को भी भ्रमित व आक्रामित नहीं करना चाहिए।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र-साभार गूगल
ज्ञान वर्धन कराती, चक्षुओं को दुरूस्त कराती पंक्तियाँ।
ReplyDeleteप्रशंसा हेतु आभार माननीय।
ReplyDeleteसादर।
चेहरे को केवल मेकअप से
ReplyDeleteढक लेने से कोई
ख़ूबसूरत नहीं होता
और ना ही आकर्षक;
रंगे सियार के आगे
मुंह खोलने से पहले भी
सोचना पड़ता है कि
वह दिल से सुन रहे हैं
या दिमाग से।
सुन्दर प्रस्तुति
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत गहरी रचना। बात बिल्कुल सही है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सुन्दर विचारमाला
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
ReplyDeleteसादर।