हम दोनों
और प्रभाकर का
तेज... प्रबल
शिकन धुले
कुछ थकान लिए
अविरल,अविचल,अथक,सबल ।
गरल-तमस को चीरता
अधरों पर मुस्कान
अभी ताज़ी है
कोई राग तो अलापो...
चातक मन प्रतीक्षारत
निशा का एक पहर
अभी बाकी है...।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र-साभार गूगल
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
राम एक नाम नहीं जीवन का सोपान हैं। दीपावली के टिमटिमाते तारे वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की पवित्र पर...
उत्तम अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय। सादर ।
Deleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय। सादर ।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय। सादर ।
Deleteसुंदर प्रस्तुति। बहुत खूब।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय। सादर ।
Deleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार विभा दी। सादर ।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब सृजन।
हार्दिक आभार सुधा जी। सादर ।
Deleteकरता बात है!
ReplyDeleteआशा का दामन थामें सुंदर सृजन।
क्या बात है। पढ़ें कृपया।
Deleteहार्दिक आभार। सादर ।
Deleteअत्यंत सुन्दर एवं भावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना जी । सादर ।
Deleteचातक मन प्रतीक्षारत
ReplyDeleteनिशा का एक पहर
अभी बाकी है।
बहुत मधुर, बहुत कोमल रचना...
बधाई सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹
हार्दिक आभार शरद जी । सादर ।
Deleteअति सुंदर अभिव्यक्ति सधु जी । अभिनंदन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय। सादर ।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय। सादर ।
ReplyDeleteमेरी रचना को मंच प्रदान करने के लिए हृदय तल से आभार अनीता जी।
ReplyDeleteसादर।
गहरे शब्द।
ReplyDeleteBeautiful lines •••