शब्द
बयार से भी हल्का
फूलों की पखुड़ियों...
से भी कोमल
धरती सा धारक
आकाश सा विस्तृत
प्रेम सा मधुर
अमृत सा ग्राह्य
शूल से भी तीक्ष्ण
ये शब्द अधर पे
मनोभावानुरूप चलते हैं।।
||सधु चन्द्र।।
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
राम एक नाम नहीं जीवन का सोपान हैं। दीपावली के टिमटिमाते तारे वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की पवित्र पर...
सही कहा आपने। शब्द और मनोभाव एक दूसरे के पूरक हैं।
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