तुम्हारी थाली में रोटी
क्या तुम्हारे दांत हैं
अशरफिया चिबोती!!!
लक्ष्मी की थाती
संभालने वाले,
कुबेर का
इतना होता मान ।
पर, अन्नपूर्णा की थाती
संभालने वाले
किसान का
होता घोर अपमान।
आख़िर क्यों?
मैं हूँ एक किसान।
लकड़ी के घुन की तरह
चाटा जा रहा एक सामान।
अपने पसीने से सींच
फ़सल को
देता सबको अनाज़।
पर खुद ही दाने-दाने को
हो जाता मोहताज़।
हो गया खोखला
भीतर से
अपनी ज़रूरतों को मारता
अपनी विवशता को
अपने ही भीतर झांकता ।
हाँ! मैं हूँ एक किसान।
देश का अभिमान ।
ज़रूरतें नगण्य हमारी
एवज में बर्बरता भारी
तरसता, गिड़गिडा़ता
छोटी-छोटी
ख़्वाहिशों को
क्या विधि से पाया हमने यही विधान!!
क्योंकि ...
मैं हूँ एक किसान।।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र- साभार गूगल
बेहतरीन सम-सामयिक चिंतन लेखन।
ReplyDeleteआपकी सुघड़ हिन्दी और सुगम लेखन शैली, उत्कृष्ट व प्रभावशाली है।
साधुवाद आदरणीया....
धन्यवाद माननीय।
Deleteआपके विश्लेषणात्मक शब्द मेरे लिए अनमोल है।
सादर।
शायद आपका सानिध्य, मेरी हिन्दी भाषा को सुघड़ बना जाए
ReplyDeleteआपके इस प्रशंसाजनक शब्द के लिए आभार।
Deleteसादर।
धरती पुत्र की व्यथा बयाँ करती सुगठित और मार्मिक रचना सधु जी। हार्दिक शुभकामनाएं🙏 🌹❤❤🌹
ReplyDeleteधन्यवाद रेणु जी।
ReplyDeleteविश्लेषणात्मक हेतु हार्दिक आभार ।
सादर।
गूढ़ एवं सम-सामयिक चिंतन शैली की उत्कृष्ट उपज।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
हार्दिक आभार महोदय ।
ReplyDeleteसादर।