जीने वाले का
'मरण' होता है ।
दूसरे के लिए
जीने वाले का तो
हमेशा ही 'स्मरण' होता है।
'प्राप्त' को 'पर्याप्त' समझने वाला ही
संतोषी 'सुखी' होता है
वरना..
ज़्यादा और ज़्यादा के
ज़हरीले भूख में
इंसान अक्सर 'दुखी' होता है।
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु । सर्व: कामानवाप्नोतु सर्व: सर्वत्र नंदतु । " सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्या...
सत्य को दृश्यमान करती अनोखी कृति..
ReplyDeleteहार्दिक आभार। सादर।
Deleteबहुत सही सधु जी। सादर बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर ।
प्राप्त' को 'पर्याप्त' समझने वाला ही
ReplyDeleteसंतोषी 'सुखी' होता है
वरना..
ज़्यादा और ज़्यादा के
ज़हरीले भूख में
इंसान अक्सर 'दुखी' होता है।
प्रभावशाली रचना ।
हार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।