तो जान जाती है
उस पिता का क्या !!!
जिसने सीने से
जान निकाल कर दे दी....
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बड़ी लाडली बेटी मेरी
घर में जिससे रौनक है
है हठीली लाडो मेरी
मुझ पर जिसका शासन है ।
बेटी है गुणवान मेरी
हंसमुख
नटखट
मुझ पर ..
तुनक मिजाज है
और पूरे घर पर करती कब्जा
प्रेम-भाव का अंबार है।
बेटी है बड़ी सयानी
पर छल-प्रपंच से हैअंजानी
इसलिए तो...
ठोक बजाकर
ढूँढ ही लाया
बाती के लिए
दीप सजाया
घर का उजाला देने आया
अनजाने को जानकर
कितना जाना नहीं पता
इस नए अन्जाम पर
पिता हूँ मैं ..
आँखें चौड़ी कर
आँक रहा चहुँओर
रो नहीं सकता
पर कलेजा है फटता
देख -देख चौखट की ओर
कन्यादान है
पुण्य काम तो
यह रिवाज भी
मैं करता हूं
खो नहीं सकता
अपनी थाती
यह सोच
विचलित मन
वश करता हूं
पुण्य पुलकित उज्जवल धाम
हे देव! विराजो
पूरे हो यह मंगल काम
हे देव! विराजो
निश्चय ही...
हे वत्स!
अपने शरीर से निकाल
प्राण देता हूँ
आशीष के साथ
आज कन्यादान देता हूँ
आज कन्यादान देता हूँ।।
।।सधु।।
वाह।
ReplyDeleteआभार
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद माननीय
Deleteमेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " में साझा करने हेतु हार्दिक आभार🙏
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
Deleteनिश्चय ही...
ReplyDeleteहे वत्स!
अपने शरीर से निकाल
प्राण देता हूँ
आशीष के साथ
आज कन्यादान देता हूँ
आज कन्यादान देता हूँ।।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन।
हार्दिक आभार
Deleteहे वत्स!
ReplyDeleteअपने शरीर से निकाल
प्राण देता हूँ
आशीष के साथ
आज कन्यादान देता हूँ
आज कन्यादान देता हूँ।।सारगर्भित रचना - - एक पिता की हैसियत से पुत्री का सुख दुःख महसूस कर सकता हूँ - - नमन सह।
हार्दिक आभार🙏🙏
Deleteठोक बजाकर
ReplyDeleteढूँढ ही लाया
बाती के लिए
दीप सजाया
–सुन्दर भावाभिव्यक्ति
हार्दिक आभार 🙏
ReplyDeleteहे वत्स!
ReplyDeleteअपने शरीर से निकाल
प्राण देता हूँ
आशीष के साथ
आज कन्यादान देता हूँ
आज कन्यादान देता हूँ।।
वाह!
आभार
ReplyDeleteसादर