Friday, 23 October 2020

कन्यादान

सीने से लगा कोई कलम मांँग ले
तो जान जाती है 
उस पिता का क्या !!!
जिसने सीने से 
जान निकाल कर दे दी....

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बड़ी लाडली बेटी मेरी 
घर में जिससे रौनक है 
है हठीली लाडो मेरी 
मुझ पर जिसका शासन है ।

बेटी है गुणवान मेरी 
 हंसमुख
 नटखट
मुझ पर ..
तुनक मिजाज है
 और पूरे घर पर करती कब्जा 
 प्रेम-भाव का अंबार है।

बेटी है बड़ी सयानी 
पर छल-प्रपंच से हैअंजानी 

इसलिए तो...

 ठोक बजाकर 
ढूँढ  ही लाया  
बाती के लिए 
दीप सजाया

घर का उजाला देने आया 
अनजाने को जानकर 
कितना जाना नहीं पता 
इस नए अन्जाम  पर

पिता हूँ मैं ..
आँखें चौड़ी कर
आँक रहा चहुँओर

रो नहीं सकता 
पर कलेजा है फटता
देख -देख चौखट की ओर

कन्यादान है 
पुण्य काम तो 
यह रिवाज भी 
मैं करता हूं
खो नहीं सकता 
अपनी थाती
यह सोच 
विचलित मन 
वश करता हूं

पुण्य पुलकित उज्जवल धाम
 हे देव! विराजो  
पूरे हो यह मंगल काम
 हे देव! विराजो  

निश्चय ही...
हे वत्स! 
अपने शरीर से निकाल  
प्राण देता हूँ 
आशीष के साथ 
आज कन्यादान देता हूँ
आज कन्यादान देता हूँ।।
।।सधु।। 

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 24 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. धन्यवाद माननीय
      मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " में साझा करने हेतु हार्दिक आभार🙏

      Delete
  2. निश्चय ही...
    हे वत्स!
    अपने शरीर से निकाल
    प्राण देता हूँ
    आशीष के साथ
    आज कन्यादान देता हूँ
    आज कन्यादान देता हूँ।।

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन।

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  3. हे वत्स!
    अपने शरीर से निकाल
    प्राण देता हूँ
    आशीष के साथ
    आज कन्यादान देता हूँ
    आज कन्यादान देता हूँ।।सारगर्भित रचना - - एक पिता की हैसियत से पुत्री का सुख दुःख महसूस कर सकता हूँ - - नमन सह।

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  4. ठोक बजाकर
    ढूँढ ही लाया
    बाती के लिए
    दीप सजाया

    –सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  5. हे वत्स!
    अपने शरीर से निकाल
    प्राण देता हूँ
    आशीष के साथ
    आज कन्यादान देता हूँ
    आज कन्यादान देता हूँ।।
    वाह!

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