स्वाभिमान ना आता तुमको रास।
पिछल्ले बने घूमते तुम
नहीं रुकता कभी
तुम्हारा कोई काज ।
गुडबुक्स में ऊपर रहते तुम
बॉस करता तुम पर नाज़ ।
चापलूसी,व्यवहार-कुशल ...
पड़े रहते चरणों के पास।।
शहद में डुबती
वाणी तुम्हारी ।
हर पक्ष में होती
हामी तुम्हारी ।
उल्लू सीधा करने में ...
तलवे चाटना न, लगता भार।
जय-जय-जय चापलूस महाराज
स्वाभिमान ना आता तुमको रास।।
स्वार्थ ही परमार्थ ।
स्वाभिमान का परित्याग ।
गिड़गिड़ाते, गिरे रहने पर
न आता तनिक भी लाज।
हम तो देते तुम्हें एक ही नाम ...
बिन पेंदी का लोटा
जो किसी का ना होता
बस...
ढलमलाता
एक कोने से दूसरे कोने तक
जब तक न पूर्ति हो तुम्हारा स्वार्थ।
#जनहित में जारी
"ऐसे कार्टून लोग अवसरवादी,परिवार व दायित्वों के प्रति कमजोर, धूर्त,पाखंडी व धोखेबाज होते हैं"।।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र - साभार गूगल
लाजवाब
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा।
ReplyDeleteWow amazing
ReplyDeleteबिल्कुल सही आकलन ! पर यह प्रजाति भी आदिकाल से अस्तित्व में है
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को मंच प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार दिव्या जी।
Deleteसादर।
चापलूसों की बढ़िया आरती उतारी है आपने। आपको बधाई।
ReplyDeleteवाह👌👌👌 रोचक और सटीक चापलूस वंदना सधू जी!! अहम हिस्सा है ये चाटुकार ज़िंदगी का। हार्दिक शुभकामनाएं इस दिलचस्प रचना के लिए🌹🌹
ReplyDeletePlease see my blog http://oyfdvb.blogspot.com/2021/02/blog-post_33.html
Deleteसशक्त व्यंग्य!!!
ReplyDeleteइन महापुरुषों की जय😀
ReplyDeleteमेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी।
ReplyDeleteसादर।
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है सधु जी ! हम जैसे लोगों का तो यह भोगा हुआ यथार्थ है ।
ReplyDeleteप्रशंसा और चापलूसी के बीच एक बहुत महीन रेखा है.
ReplyDeleteन जाने कब स्वामिभक्ति चाटुकारिता का जमा पहन ले.
करारा व्यंग्य! खरी खरी ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
बहुत खूब....
ReplyDeleteचाटुकारों का लाजवाब चरित्र चित्रण...
बधाई सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति महान कृपया होगी
Deleteसटीक व्यंग्य... लाजवाब सृजन ।
ReplyDeleteआपकीे रचना वास्तविकता की परिचयात्मक भेंट है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteवास्तविकता पर आधारित रचना बहुत खूब
ReplyDeleteआभार
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