क्रोध संतप्त, हृदय विरक्त
पर न उढे़ल,
शब्दों से तू रक्त।
अधरों को दे विराम
नयनों का बन भक्त।।
शिक्षालय है देह तेरा
हो शिक्षा विषय अनिवार्य
पाखंड,आडंबर विषयों का
सदा ही कर परिहार्य।।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र-साभार गूगल
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
राम एक नाम नहीं जीवन का सोपान हैं। दीपावली के टिमटिमाते तारे वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की पवित्र पर...
गागर में सागर जैसी रचना है। आपको बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
शिक्षालय है देह तेरा
ReplyDeleteहो शिक्षा विषय अनिवार्य
पाखंड,आडंबर विषयों का
सदा ही कर परिहार्य।।
क्या बात कही है !!बेहतरीन अभिव्यक्ति सधु जी,सादर नमन
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बेहतरीन रचना गागर में सागर भर दिया आपने
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सुंदर सीख देती छोटी पर नावक के तीर सी गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सुंदर रचना , गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
इस छोटी-सी कविता के शब्द-शब्द में सार्थकता कूट-कूटकर भरी है सधु जी आपने ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
छोटी सी पंक्ति कि ''शब्दों से तू रक्त।
ReplyDeleteअधरों को दे विराम''...बड़ा संदेश...बहुत खूब सधु जी
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
क्रोध संतप्त, हृदय विरक्त
ReplyDeleteपर न उढे़ल,
शब्दों से तू रक्त।
अधरों को दे विराम
नयनों का बन भक्त।।
अनमोल विचार
शुभकामनाएं।
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत खूब,
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सुन्दर सारगर्भित रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
चन्द चब्दों में गहरी बात ...
ReplyDeleteदूर की बात, बहुत सुन्दर रचना है ...
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
चन्द चब्दों में बड़ा संदेश...बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteसादर।