Wednesday, 3 March 2021

अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है

हथौड़ी के बार-बार प्रहार करने पर
ताला खुलता नहीं टूट जाता है। 
 निरंतर वार पर जब
 अभिमानी ताला न खुला 
तब हथौड़ी ने, 
चाबी के पास जाकर पूछा...
तुम ऐसा क्या करती हो!!!
जो कि मेरे प्रहार से संभव नहीं!!!
चाबी ने कहा...
 तुम बाह्य प्रहार करते हो पर मैं...
 अंतर्मन को छूती हूँ।

अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है।
।।सधु चंद्र।।

चित्र-साभार गूगल

41 comments:

  1. बड़े ही पते की बात कही है आपने।...

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  2. तुम बाह्य प्रहार करते हो पर मैं...
    अंतर्मन को छूती हूँ।

    अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है।

    अलमोल सोच की नतमस्तक उपज।

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  3. बहुत सुंदर सृजन

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  4. चाबी का दर्शन उत्तम है। सुंदर-सार्थक रचना के लिए आपको बधाई।

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  5. बिलकुल ठीक कहा सधु जी आपने । मुश्किलात को अगर ताला कहें तो उनकी जानिब हमारा नज़रिया हथौडे जैसा न होकर चाबी जैसा ही होना चाहिए ।

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  6. वाह! सुंदर भाव..लघु पर नायाब कृति..

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  7. वाह
    कितना तथ्यपूर्ण लिखा आपने प्रिय सधु जी।
    बेहतरीन विचारणीय सृजन:)

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  8. बिलकुल सत्य कहा है सधु जी,सादर नमन आपको

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  9. वाह !!!
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति 🌹🙏🌹

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  10. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  11. वाह बेहतरीन सृजन

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  12. वाह बेहतरीन सृजन

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  13. अंतरमन की दुनिया न्यारी

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  14. हार्दिक आभार ।
    सादर।

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  15. हार्दिक आभार ।
    सादर।

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