ताला खुलता नहीं टूट जाता है।
निरंतर वार पर जब
अभिमानी ताला न खुला
तब हथौड़ी ने,
चाबी के पास जाकर पूछा...
तुम ऐसा क्या करती हो!!!
जो कि मेरे प्रहार से संभव नहीं!!!
चाबी ने कहा...
तुम बाह्य प्रहार करते हो पर मैं...
अंतर्मन को छूती हूँ।
अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है।
।।सधु चंद्र।।
चित्र-साभार गूगल
बड़े ही पते की बात कही है आपने।...
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
तुम बाह्य प्रहार करते हो पर मैं...
ReplyDeleteअंतर्मन को छूती हूँ।
अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है।
अलमोल सोच की नतमस्तक उपज।
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
चाबी का दर्शन उत्तम है। सुंदर-सार्थक रचना के लिए आपको बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बिलकुल ठीक कहा सधु जी आपने । मुश्किलात को अगर ताला कहें तो उनकी जानिब हमारा नज़रिया हथौडे जैसा न होकर चाबी जैसा ही होना चाहिए ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह! सुंदर भाव..लघु पर नायाब कृति..
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर और सटीक।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteकितना तथ्यपूर्ण लिखा आपने प्रिय सधु जी।
बेहतरीन विचारणीय सृजन:)
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बिलकुल सत्य कहा है सधु जी,सादर नमन आपको
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह! बहुत ख़ूब।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह !!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति 🌹🙏🌹
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
अंतरमन की दुनिया न्यारी
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
ReplyDeleteसादर।
हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteसादर।