हो रहा दूर-दराज़
फिर हवा के झोंकों में
हो विलीन
जल से करता एकाकार ।
कि आज दस्तक दी किसी ने
हवा पर दस्तख़त की किसी ने ।।
उन्मुक्त गगन में
चंचल मन
उड़ता जाता क्षितिज पार ।
अंतस से उठती तरंग
तेज गति से ...
चाप पर न पाता नियंत्रण
बारम्बार ।
आरोह-अवरोह
पर लगा टेक
मनोभाव बना देता
सामान्य को कलाकार
कि आज दस्तक दी किसी ने
हवा पर दस्तख़त की किसी ने ।।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र - साभार गूगल
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो 🙏
हार्दिक आभार सखी।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 04 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को साझा करने के लिए एवं उत्कृष्ट मंच प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार माननीय। सादर।
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबधाई हो आपको।
हार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।
अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी।
Deleteसादर।
हृदय उर्मियों का विस्तार
ReplyDeleteहो रहा दूर-दराज़
फिर हवा के झोंकों में
हो विलीन
जल से करता एकाकार ।
इतनी सुन्दर पंक्तियाँ की मन मंत्रमुग्ध हो गया। आदरणीया सधु जी, कृपया इन पंक्तियों को और विस्तार दें, भावों को जरा और उजागर करें ताकि हम और गहराई में गोता लेते रहे।
एक अनुरोध। ।।।
बहुत-बहुत शुभकामनाएं। ।।
हार्दिक आभार माननीय।
Deleteनिश्चय ही ।
मंत्रमुग्ध करती सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
नव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय ।
Deleteसादर।
कि आज दस्तक दी किसी ने
ReplyDeleteहवा पर दस्तख़त की किसी ने ।।
क्या बात!
हार्दिक आभार माननीय ।
ReplyDeleteसादर।