बड़ा अंतर है
हिंसा-अहिंसा का।
जहाँ मनुष्य वाणी से
भावनाओं को अभिव्यक्त करता है,
वही पशु हिंसा द्वारा ।
सुना है आपके पास पर्याप्त डिग्रियाँ हैं
और मनुष्य के रूप में भी
अवतार लिया है आपने
जो कि सृष्टि का
बुद्धिमान जीव कहलाता है ।
यदि पेड़-पौधों के पास
पर्याप्त फल हो तो वे
लदकर झुक जाते हैं
समर्पित हो जाते हैं ।
कुएं में पर्याप्त पानी हो तो वह
आपकी पहुंच तक आ जाता है ।
नदियों में पर्याप्त जल हो तो
खेत-खलिहान लहलहाने लगते हैं।
ख़ुद को योग्य समझने वाले
क्या लाभ आपके ज्ञान का !!!
जब अंधकार में
प्रकाश न पहुंचे
और बच्चे आतंकित हों आपके कोप से...।
शिक्षक रोल मॉडल होते हैं उनका एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होना चाहिए बच्चों में ज्ञान बांटना न कि शारीरिक दंड बांटना। ज्ञान बढ़ाइए कोप नहीं।
।।केवल अपवाद रुपी शिक्षक के लिए।।
।।सधु चंद्र।।
चित्र - साभार गूगल
दरअसल कुछ शिक्षक इस मानसिकता के होते हैं कि उन्हें लगता है कि शारीरिक दण्ड से ही छात्र के शैक्षिक अधिगम में सुधार हो सकता है। कहीं-कहीं तो अभिभावक भी शिक्षकों को शारीरिक दण्ड देने हेतु प्रोत्साहित करते हैं।
ReplyDeleteबहरहाल अपनी रचना द्वारा बहुत अच्छा और विमर्शशील मुद्दा उठाया आपने।
हार्दिक आभार।
Deleteसादर
बिल्कुल सही कहा आपने, बच्चा डरता ही रहेगा,फिर वो सीखेगा ,बहुत ही अच्छी रचना है ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर
बहुत सही कहा महोदया।
ReplyDeleteशिक्षाजगत पूज्य स्थल है जहाँ केवल ज्ञान की पूजा होनी चाहिए।कुछ एक दो लोग ऐसे हैं जिनकी वजह से महिमा धूमिल होती है।
सादर नमन मार्गदर्शन हेतु।
हार्दिक आभार।
Deleteसादर
प्रेरक रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०२-२०२१) को 'असर अब गहरा होगा' (चर्चा अंक-३९८८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार अनीता जी ।
Deleteसादर।
सार्थक संदेश देती रचना के लिए आपको बधाई। शायद कुछ लोगों में बच्चों को प्यार से पढ़ाने की स्किल ही नहीं होती।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर
"भय बिनु प्रीत न होय " की मानसिकता ही शिक्षक वर्ग में यह अमानवीय व्यवहार का कारण है ,या फिर गुस्से का शिकार।
ReplyDeleteषर हर हालत में यह बहुत दुखद है।
सार्थक लेख।
हार्दिक आभार।
Deleteसादर
ख़ुद को योग्य समझने वाले
ReplyDeleteक्या लाभ आपके ज्ञान का !!!
जब अंधकार में
प्रकाश न पहुंचे
और बच्चे आतंकित हों आपके कोप से...।
आज कल तो शिक्षक का प्रकोप कहाँ ? शिक्षक ही डरते बेचारे ।
आपके विचार से सहमत ।
Deleteसमय के साथ हालात बदले हैं सोच बदली है विचार बदले हैं अभिभावक शिक्षक और बच्चे भी बदले हैं पर कुछ अपवाद स्वरूप शिक्षक अभी भी हाथ साफ करने में पीछे नहीं हटते दी।
"शिक्षक रोल मॉडल होते हैं उनका एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होना चाहिए बच्चों में ज्ञान बांटना न कि शारीरिक दंड बांटना। ज्ञान बढ़ाइए कोप नहीं।"
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती बेहतरीन सृजन।
मगर," आज कल तो शिक्षक का प्रकोप कहाँ ? शिक्षक ही डरते बेचारे।" सविता जी की इस कथन से भी सहमत हूँ। मेरे पति भी शिक्षक है और हमारा अनुभव भी यही कहता है। आज जो ये उलटे हालत हो रखें है इससे भी डर लगता है।
सहमत।
Deleteकुछ अपवाद रुपी शिक्षक आज भी समाप्त नहीं हुए हैं। कामिनी जी यह बस उन्हीं के लिए है।
सादर।
सही कहा
ReplyDeleteसार्थक सृजन ।
ReplyDeleteपूर्णरूप से सहमत हूं आपके विचारों से सधु जी ।
ReplyDeleteसुंदर विश्लेषण
ReplyDeleteबहुत सही कहा
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