शब्द
बयार से भी हल्का
फूलों की पखुड़ियों...
से भी कोमल
धरती सा धारक
आकाश सा विस्तृत
प्रेम सा मधुर
अमृत सा ग्राह्य
शूल से भी तीक्ष्ण
ये शब्द अधर पे
मनोभावानुरूप चलते हैं।।
||सधु चन्द्र।।
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु । सर्व: कामानवाप्नोतु सर्व: सर्वत्र नंदतु । " सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्या...
सही कहा आपने। शब्द और मनोभाव एक दूसरे के पूरक हैं।
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