जज़्बातों को
को थोड़ा 
नापो -तोलो  
अपनी आवाज़ में 
मधुर ज़हर घोलो 
देखो ...
ज़रा आहिस्ता बोलो ।
चापलूसों की है ये सरकार 
योग्यता है 
यहाँ बेकार ...
ज्ञान व स्तरीयता 
अपनी जेब में टटोलो 🙏
देखो...
ज़रा आहिस्ता बोलो ।
अपने ख़यालात 
खुद ही ढो लो
और...
बदबूदार बाज़ार से आ रही  
इत्र की खुशबू बोलो
देखो...
ज़रा आहिस्ता बोलो।।
बस ...
बस ...
बस ...
तुम्हें पता है न
सूरज को थाली से 
कौन ढक पाया है 
इन नक्षत्रों ने तो बस 
इसे मोहरा बनाया है।
इसलिए 
भाई साहब!!! 
सही कहा है ~~
हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट ।
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥
बाकी आप स्वयं हैं समझदार 😎
।।सधु।। 
चित्र - साभार गूगल 
  
बहुत खूब. सामायिक रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद एवं आभार महोदया
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य
ReplyDeleteसादर
Deleteआभार
मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार
ReplyDeleteसादर
चापलूसों की है ये सरकार
ReplyDeleteयोग्यता है
यहाँ बेकार ...
ज्ञान व स्तरीयता
अपनी जेब में टटोलो 🙏
आभार
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