पादुका का इतिहास
है पुराना
खड़ाऊँ थे कभी
परंपरा ने अभी
जूता है माना ।
जूते ही तो थे
जो जीजा-साली के
प्रथम मधुर संबंध के
गवाह बने।
मंदिर गए तो सीढ़ी पर
लोगों की परवाह बने।
पैर में जाते ही
जहाँ वफादार बने
वहीं सिर पर पड़ते ही ...
हलफ़दार बने।
पिता के जूते
बेटे के पैर में आते ही ...
वे बन जाते हैं भाई
मनचलों की गर्दभ यात्रा में
इससे ही होती पिटाई
और फिर स्वागत में
यह मालारुपी
बन जाते हैं अनुयायी ।😅
इतना ही नहीं बहन सैंडल👡 ने
कई प्रेमियों के गाल पर
है प्रतिलिपि छोड़ी
धृष्टता से माता एवं बहनों पर
जिसने आँख है गुड़ेरी ।
ये कभी पैरों की शोभा
तो कभी जॉर्ज बुश के माथे का श्रृंगार बने
यकीन ना हो तो मीडिया से पूछ लो...😀😀
निश्चय ही
संघर्ष का पहला गवाह है -जूते का घिसना ।
सफलता की पहचान है- जूते का चमकना।
भाई साहब पूरी दुनिया ही जूते का खेल ...
"जब अस्त्र पड़ता है झूठा
बस एक शस्त्र चलता है जूता 🥾
फिर क्या... सारी सच्चाई पल भर में
वह शख्स है उगलता ।"
बड़े काम का जूता राम
साहब, नेता सब करते इसे सलाम🙏🙏🙏
।।सधु।।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteधन्यवाद एवं हार्दिक आभार
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteसादर..
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार दी
Deleteप्रणाम
जूतों पर जाती आपकी दृष्टि
ReplyDeleteशब्दों के माध्यम से सजीव हो रही है
यह एक अच्छे शब्द बुनकर की पहचान है
बधाई एवं अशेष शुभकामनाएं
आभार!
ReplyDeleteसादर