तुम राग हो या समर पता नहीं
तुम बिंब हो प्रतिबिंब हो पता नहीं ~~~~
छाया भी छाया ढूंढती है जब
उस जेठ के सावन हो पता नहीं
तुम मोह हो या संकल्प पता नहीं
तुम कार्य हो या फल पता नहीं
हो किस्सा या परिणाम ये भी पता नहीं
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
राम एक नाम नहीं जीवन का सोपान हैं। दीपावली के टिमटिमाते तारे वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की पवित्र पर...
भ्रम या भ्रमर...👌
ReplyDeleteआभार !
Deleteसादर
मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" प्रकाशित करने हेतु हार्दिक आभार दी।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से आपने प्रकृति के साथ भावनाओं का साम्य साधा है सधु जी कि ...तुम मोह हो या संकल्प पता नहीं...वाह
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteहार्दिक आभार
महोदया
वाह सुंदर व्यंजना ।
ReplyDeleteअभिनव सृजन।
धन्यवाद!
Deleteहार्दिक आभार महोदया
सुंदर प्रस्तुति, सधु चंद्र दी।
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteहार्दिक आभार
उत्कृष्ट शब्दों का समन्वय
ReplyDeleteआभार!
Deleteसादर
भावपूर्ण
ReplyDeleteआभार!
ReplyDeleteसादर