हैं बेटे जिनके घूमते,
दरिद्रों के वेश में।
दया लुप्त हो रही ------
क्षुधार्त बिलबिला रहे
तरस रहे तड़प रहे
और तुम....
राह के किनारे
मारते चटकारे
खा रहे गिरा रहे
आधे -अधूरे...
और वे आँखों से पेट भरते
नाक से हैं सूंघते------
है गड्ढे पड़े गालों पे
और---
धंसे हैं पेट- पीठ में
कर रहे हैं तृप्त ये ,होठ अपने चाटके
लबलबाते चीभ इनके , जूठन को ताकते।
ओह...
हो गयी दया विलुप्त
देवी के देश में
हैं बेटे जिनके घूमते
दरिद्रों के वेश में।
नम आँखों से माता , कहती है रुधकर---
मेरी प्रतिमा से पहले
ध्यान दो इनके भूख पर
मेरी प्रतिमा से पहले
ध्यान दो इनके भूख पर
'जय माँ भैरवी असुर भयाउनी'🙏🙏🙏
।।सधु।।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 17 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद एवं आभार
Deleteजय माता की
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएं
अशेष शुभकामनाएँ
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद एवं आभार माननीय
ReplyDeleteऔर वे आँखों से पेट भरते
ReplyDeleteनाक से हैं सूंघते------
है गड्ढे पड़े गालों पे
और---
धंसे हैं पेट- पीठ में
कर रहे हैं तृप्त ये ,होठ अपने चाटके
लबलबाते चीभ इनके , जूठन को ताकते।
दुखद वास्तविकता को प्रस्तुत करती
उत्कृष्ट रचना
आभार
Deleteसादर