ज़र्रा -ज़र्रा
रंग-बिरंगी तितलियों सी
झिलमिलाती रोशनी सी
चौन्धियाते आँखों के आगे
स्पीडब्रेकर सी ....पर
बढ़ रही हूँ मुश्किलों को निपटाते
ज़र्रा -ज़र्रा
जो है आज़ादी आकलन-अभिव्यक्ति की
हूँ भरी आत्मविश्वास साहस सी
पर ये साहस "साहस" है
न हूँ उपद्रवी सी ...
क्योंकि ....
अब असंभव -मुश्किल कुछ भी नहीं
ना डगमगाते हैं कदम
ना थर्राते हैं बदन
बढ़ रही हूँ परिपक्वता से आगे
ज़र्रा-ज़र्रा।।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार
ReplyDeleteसुन्दर लेखन
ReplyDeleteबधाई व स्वागत
धन्यवाद एवं आभार
Deleteजर्रा-ज़र्रा सफलता भी मिल ही जाएगी .
ReplyDeleteजी
Deleteशुक्रिया
सुन्दर। ब्लोग फ़ौलोवर बटन उपलब्ध करायें।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteजी बिल्कुल
सुंदर रचना ! स्वागत है
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteअति सुन्दर।
धन्यवाद ¡
Deleteवाह!
ReplyDeleteआभार
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