Monday, 18 January 2021

भूख इतनी न जगाओ कि ...झमाझम बारिश में भी प्यास ना बुझे ...!

ज़िंदगी का दूसरा नाम 'जिंदादिली' है। 
जो कि बा-मुश्किल लोगों को मिली है।
बिन बारिश भी जो खुद को 
सूखने ना दे, 
पतन होने न दे 
उसी का नाम हरियाली है ।
जिसके लिए स्थिरता चाहिए 
संयम, ठहराव चाहिए। 
भूख इतनी न जगाओ कि ...
झमाझम बारिश में भी 
प्यास ना बुझे ...!
अपने भीतर के पानी को 
इतना न गिराओ कि
मर्यादा  न सूझे...!
वरना ...
सूखे पत्ते की तरह गिर जाओगे ...
और कई लोग हैं 
तुम्हारे नक्श-ए-क़दम पर चलने वाले 
जो तुम्हें ढेर कर आग लगा जाएंगे।
और तुम खुद को जलता हुआ पाओगे।।

।।सधु चन्द्र।।

चित्र - साभार गूगल 

24 comments:

  1. अनर्गल तृष्णा इंसान का पतन करवाती है.सचेत करती नायाब कृति..

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  2. बेहतरीन रचना

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  3. अपने भीतर के पानी को
    इतना न गिराओ कि
    मर्यादा न सूझे...!
    बहुत सुंदर रचना प्रिय सधु जी।

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  4. अपने भीतर के पानी को
    इतना न गिराओ कि
    मर्यादा न सूझे...!
    वरना ...
    सूखे पत्ते की तरह गिर it's to good word

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  5. ज़िंदगी का दूसरा नाम 'जिंदादिली' है।
    जो कि बा-मुश्किल लोगों को मिली है।
    बिन बारिश भी जो खुद को
    सूखने ना दे,
    पतन होने न दे
    उसी का नाम हरियाली है ।

    सुंदर, सार्थक रचना.....

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  6. बहुत ही सुंदर सृजन।

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  7. हार्दिक आभार माननीय ।
    सादर नमन।

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  8. हार्दिक आभार माननीय ।
    सादर नमन।

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  9. भूख इतनी न जगाओ कि ...
    झमाझम बारिश में भी
    प्यास ना बुझे ...!
    अपने भीतर के पानी को
    इतना न गिराओ कि
    मर्यादा न सूझे...!


    सटीक....

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  10. उत्कृष्ट कटाक्ष का साक्षात्कार।
    उम्दा।

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