हमेशा 'समाप्त' होना नहीं होता ।
कभी -कभी टूटने और बिखरे से
जीवन का 'आरंभ' भी होता है।।
नदी की राह में
चट्टान के गिर जाने से
रास्ता बंद नहीं हुआ करता ।
कभी-कभी
रुख मोड़ कर भी
राह निकल जाया करती है।।
यह ना समझना कि
यह 'अनंत'
स्वयं ही प्रभावी बना है...
हर बार 'अंत' ने
इसे सहारा दिया है।।
।।सधु चन्द्र।।
चित्र-साभार गूगल
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह! समाप्त और आरंभ। अनंत को अंत का सहारा! विचारणीय के साथ-साथ अति भावप्रवण।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
निराशा में आशा का संचार करती सारगर्भित कृति..
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सारगर्भित विचार सधु जी👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
वाह!
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।