सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे
लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं ।
लिफाफे के बाहर जो पड़ा है ख़त
उस ख़त में ऐसा तो कुछ लिखा नहीं ।
जैसा कि हाथ फेर महसूस.... किया मैंने ।
बहुत रहस्यमयी है
यह टुकड़ा कागज़ का...।
पता नहीं...
जो मैंने सोचा
वह तुमने कहा !
या कहा नहीं !
सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे
लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं ।
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बहुत ख़ूबसूरत,तिलस्मी है
झरोखा तेरी यादों का ।
भले बंद हो पलके मेरी
पर यादों का सिलसिला जाता नहीं ।
कपड़ों को तह करते-करते
यादों की तहे खुल जाती हैं
और कब तह हो जाती हैं यादें तुम्हारी
कपड़ों की तहों में
पता नहीं...!
।।सधु चन्द्र।।
चित्र - साभार गूगल
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति सधु जी । पढ़ने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए है यह ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय । सादर।
Deleteसार्थक गीत।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय । सादर।
Deleteएक खूबसूरत ख्याल को बाखूबी लिखा है ... नए बिम्ब जोड़े हैं ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय । सादर।
Deleteसुन्दर ख्यालों से रूबरू कराती सुन्दर रचना..
ReplyDeleteहार्दिक आभार। सादर।
Deleteबहुत ख़ूबसूरत,तिलस्मी है
ReplyDeleteझरोखा तेरी यादों का ।
भले बंद हो पलके मेरी
पर यादों का सिलसिला जाता नहीं ।
मनमोहक प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीया। बसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
हार्दिक आभार माननीय । सादर।
Deleteबार-बार पढ़ने योग्य प्रस्तुति। बहुत सी यादों का सिलसिला वाकई तिलिस्मी होता है। सुन्दर और सार्थक सृजन के लिए आपको बधाई। सादर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय । सादर।
Deleteये यादें भी न जाने क्या क्या सोचने पर मजबूर कर देती हैं ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार। सादर।
Deleteभावपूर्ण सृजन..
ReplyDeleteहार्दिक आभार। सादर।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय । सादर।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार। सादर।
Deleteमेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी। सादर।
ReplyDeleteजब इंसान सुंदर हो तो अभिव्यक्ति आप ही सुंदर हो जाती है।
ReplyDeleteनिस्संदेह बहुत ही सुंदर है ये अभियक्ति जिस से कोई भी स्वतः ही जुड़ाव अनुभव कर सकता है।
सुंदर टिप्पणी के लिए आभार। कृपया अपना नाम भी अंकित करें।
Deleteसादर।
गहरी रचना...सजोने लायक
ReplyDeleteभले बंद हो पलके मेरी
ReplyDeleteपर यादों का सिलसिला जाता नहीं ।
मनमोहक प्रस्तुति