Monday 15 February 2021

सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं...

सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे 
लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं ।

 लिफाफे के बाहर जो पड़ा है ख़त 
उस ख़त में ऐसा तो कुछ लिखा  नहीं ।
जैसा कि हाथ फेर महसूस.... किया मैंने ।

बहुत रहस्यमयी है 
यह टुकड़ा कागज़ का...।
पता नहीं... 
जो मैंने सोचा 
वह तुमने कहा ! 
या कहा नहीं !

सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे 
लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं ।

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बहुत ख़ूबसूरत,तिलस्मी है 
झरोखा तेरी यादों का ।
भले बंद हो पलके मेरी 
पर यादों का सिलसिला जाता नहीं ।
कपड़ों को तह करते-करते 
यादों की तहे खुल जाती हैं
और कब तह हो जाती हैं यादें तुम्हारी  
कपड़ों की तहों में 
पता नहीं...!

।।सधु चन्द्र।। 
चित्र - साभार गूगल 

25 comments:

  1. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति सधु जी । पढ़ने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए है यह ।

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    1. हार्दिक आभार माननीय । सादर।

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    1. हार्दिक आभार माननीय । सादर।

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  3. एक खूबसूरत ख्याल को बाखूबी लिखा है ... नए बिम्ब जोड़े हैं ...

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    1. हार्दिक आभार माननीय । सादर।

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  4. सुन्दर ख्यालों से रूबरू कराती सुन्दर रचना..

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  5. बहुत ख़ूबसूरत,तिलस्मी है
    झरोखा तेरी यादों का ।
    भले बंद हो पलके मेरी
    पर यादों का सिलसिला जाता नहीं ।
    मनमोहक प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीया। बसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

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    1. हार्दिक आभार माननीय । सादर।

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  6. बार-बार पढ़ने योग्य प्रस्तुति। बहुत सी यादों का सिलसिला वाकई तिलिस्मी होता है। सुन्दर और सार्थक सृजन के लिए आपको बधाई। सादर।

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    1. हार्दिक आभार माननीय । सादर।

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  7. ये यादें भी न जाने क्या क्या सोचने पर मजबूर कर देती हैं ।

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  8. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. हार्दिक आभार माननीय । सादर।

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  10. मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी। सादर।

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  11. जब इंसान सुंदर हो तो अभिव्यक्ति आप ही सुंदर हो जाती है।
    निस्संदेह बहुत ही सुंदर है ये अभियक्ति जिस से कोई भी स्वतः ही जुड़ाव अनुभव कर सकता है।

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    1. सुंदर टिप्पणी के लिए आभार। कृपया अपना नाम भी अंकित करें।
      सादर।

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  12. गहरी रचना...सजोने लायक

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  13. भले बंद हो पलके मेरी
    पर यादों का सिलसिला जाता नहीं ।
    मनमोहक प्रस्तुति

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