स्वारथ सकल पूरित शोरगुल-कोलाहल।
धैर्य मन पीता
नितदिन हलाहल।।
हे मन उठ !
चल क्रान्ति ला।
लोहे को लोहे से काट
जग में शान्ति फैला।।
प्रातर्वन्दन 🙏🙏🙏🙏💐
।।सधु चन्द्र।।
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
राम एक नाम नहीं जीवन का सोपान हैं। दीपावली के टिमटिमाते तारे वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की पवित्र पर...
वाह ! सुंदर प्रेरक और वन्दनीय छंद..सादर शुभकामनाएं..समय मिले तो ब्लॉग पर अवश्य भ्रमण करें..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहे मन उठ !
ReplyDeleteचल क्रान्ति ला।
लोहे को लोहे से काट
जग में शान्ति फैला।।
मन में ओज भरती प्रेरक सृजन सधु जी
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुन्दर भाव
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