Wednesday 31 March 2021

स्वाभिमान होना चाहिए न कि अभिमान होना चाहिए ।

विनम्रतापूर्ण ज्ञान से ही 
होता मानव ज्ञानी ।
विनय-विवेक-नम्रता बिन 
कहलाता अभिमानी ।।
अतः ....
स्वाभिमान होना चाहिए 
न कि अभिमान होना चाहिए ।

"प्रशंसा" सिर झुका कर 
विनम्रता से स्वीकार हो। 
किंतु... आलोचना पर भी 
गंभीरता से विचार हो ।

क्योंकि!!!
आलोचना...
परिष्कृत स्थान देती है ,
तभी श्रद्धा...
ज्ञान देती है ।
नम्रता...
मान देती है एवं 
योग्यता...
आपको एक स्थान देती है।।

।।सधु चन्द्र।।

23 comments:

  1. बहुत सटीक विश्लेषण सधु जी, पर प्रशंसा और चाटुकारिता के युग में आलोचक सर्वत्र निंदा का पात्र बनते। कभी तो ये बात कही जाती थी----
    निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छाबाय!!
    हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार रेणु जी।
      सादर।

      Delete
  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
    अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय ।
      सादर।

      Delete
  3. सही बात है!स्वाभिमान ही सही है। सार्थक सृजन। आपको शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय ।
      सादर।

      Delete
  4. Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय ।
      सादर।

      Delete
  5. जी बहुत रचना है...। खूब बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय ।
      सादर।

      Delete
  6. आलोचना...
    परिष्कृत स्थान देती है ,
    तभी श्रद्धा...
    ज्ञान देती है ।
    नम्रता...
    मान देती है एवं
    योग्यता...
    आपको एक स्थान देती है।----- बहुत बहुत सुन्दर सटीक रचना |

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय ।
      सादर।

      Delete
  7. हार्दिक आभार श्वेता जी ।
    सादर।

    ReplyDelete
  8. सुंदर एवम सार्थक भावाभिव्यक्ति,संदेशपूर्ण कृति ।

    ReplyDelete
  9. Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय ।
      सादर।

      Delete
  10. प्रशंसा" सिर झुका कर
    विनम्रता से स्वीकार हो।
    किंतु... आलोचना पर भी
    गंभीरता से विचार हो ।

    सटीक बात कहीं है , ज़रा सी आलोचना से लोग मंथन न कर दंगल कर देते हैं ।
    स्वयं पर अभिमान में भी बुराई नहीं बस उसमें अहंकार का समावेश न हो ।।
    सुंदर सीख देती रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार दी ।
      सादर।

      Delete
  11. बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार दी ।
      सादर।

      Delete
  12. नम्रता...
    मान देती है एवं
    योग्यता...
    आपको एक स्थान देती है।।

    सही कहा है आपने...
    बहुत अच्छी और दमदार कविता सधु जी 🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार दी ।
      सादर।

      Delete

राम एक नाम नहीं

राम एक नाम नहीं  जीवन का सोपान हैं।  दीपावली के टिमटिमाते तारे  वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की  पवित्र पर...