दुनिया में अमूमन सभी लोग एक जैसे नज़र आते हैं. पर जब मुश्किल वक़्त आता है तो सही और ग़लत की पहचान हो जाती है।
वसंत काले सम्प्राप्ते
काक: काक: पिक: पिक:
काक: कृष्ण: पिक: अपि
कृष्ण: को भेद: काकपिकयो:।
वसंत काले सम्प्राप्ते काक: काक: पिक: पिक:।।
अर्थात् कौवा भी काला है और कोयल भी, तो इन दोनों में आख़िर फ़र्क़ क्या है. जब वसंत ऋतु का आगमन होता है तो फ़र्क़ साफ़ समझ आ जाता है - क्योंकि दोनों मौसम से ख़ुश होकर गाने लगते हैं।
हम मनुष्य के रूप में कौवा और कोयल के बीच घिरे हुए हैं जब अच्छा समय होता है तो सभी एक जैसे दिखते वाली लोग आपके संगी-साथी होते हैं किंतु विषम परिस्थितियों में घिरने के साथ ही सब अपना रूप दिखाना शुरू करते हैं अतः सच्चे साथी की पहचान विशेष /विषम परिस्थितियों में ही होती हैं
सत्य ....
ReplyDeleteवेष समान होने पर, साधु और दुर्जन को मात्र देखकर पहचान पाना आसान नहीं होता।
अमूमन हम धोखा खा जी जाते हैं।
सुंदर मनन।।।।।
धन्यवाद माननीय
ReplyDeleteसादर🙏
समय आने पर ही हम लोगों को पहचान पाते हैं वरना सब दिखते तो एक जैसे ही है।
ReplyDeleteसही
आभार!
ReplyDeleteसादर