गढ़ रही हूँ खुद की तकदीर
ज़र्रा -ज़र्रा
रंग-बिरंगी तितलियों सी
झिलमिलाती रोशनी सी
चौन्धियाते आँखों के आगे
स्पीडब्रेकर सी ....पर
बढ़ रही हूँ मुश्किलों को निपटाते
ज़र्रा -ज़र्रा
जो है आज़ादी आकलन-अभिव्यक्ति की
हूँ भरी आत्मविश्वास साहस सी
पर ये साहस "साहस" है
न हूँ उपद्रवी सी ...
क्योंकि ....
अब असंभव -मुश्किल कुछ भी नहीं
ना डगमगाते हैं कदम
ना थर्राते हैं बदन
बढ़ रही हूँ परिपक्वता से आगे
ज़र्रा-ज़र्रा।।
No comments:
Post a Comment