समा जाने के लिए
अवतरित नहीं होती
वह तो निश्छल है
परोपकारी है
गति का दूसरा रूप है
समर्पण का दूसरा नाम।
जल की प्रकृति है निरंतरता
चाहे वह नदी का जल हो या सागर का।
सागर अथाह ,विस्तृत अपरीधिय
।।सधु।।
पर असंतुष्ट ,अतृप्त
कई नदियों के साथ समागम
के बाद भी असंतुष्ट,अतृप्त
पर नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
अस्तित्व खोकर भी-----
संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
तो महान कौन ???
चित्र-सभार गूगल
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद एवं आभार दी😊
ReplyDeleteवाह सधु जी, र नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
ReplyDeleteअस्तित्व खोकर भी-----
संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
तो महान कौन ???...बड़ा प्रश्न... जीवन में भी तो यही है ...हूबहू
बिल्कुल..😊
Deleteशुक्रिया🙏
वाह उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया महोदय
ReplyDeleteवाह बेहतरीन।
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर
आभार
Deleteपर नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
ReplyDeleteअस्तित्व खोकर भी-----
संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
तो महान कौन ???
महान हृदय ही तृप्त एवं संतुष्ट होता है
बहुत ही सुन्दर
लाजवाब...।
आभार🙏
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteआभार🙏
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ReplyDeleteपर नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
ReplyDeleteअस्तित्व खोकर भी-----
संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
तो महान कौन ???
बहुत सुंदर विचार का प्रतिपादन करती रचना सधू जी | नदिया के तट पर सभ्यताएं पोषित होती हैं तो संस्कार पलते हैं | जल के रूप में जीवन की धारा बहती है दो तटों के बीच में |
आभार🙏
Deleteनदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
ReplyDeleteअस्तित्व खोकर भी-----
संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
यथार्थ
भावपूर्ण
आभार!
ReplyDeleteसादर