Saturday, 17 October 2020

महान कौन ?

नदियाँ सागर की गोद में 
समा जाने के लिए 
अवतरित नहीं होती   
वह तो निश्छल है 
परोपकारी है
गति का दूसरा रूप है 
समर्पण का दूसरा नाम।

जल की प्रकृति है निरंतरता 
चाहे वह नदी का जल हो या सागर का।

सागर अथाह ,विस्तृत अपरीधिय
पर असंतुष्ट ,अतृप्त
कई नदियों के साथ समागम
 के बाद भी असंतुष्ट,अतृप्त

पर नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
अस्तित्व खोकर भी-----
संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
            तो महान कौन ???

            ।।सधु।।


चित्र-सभार गूगल

19 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. धन्यवाद एवं आभार दी😊

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  3. वाह सधु जी, र नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
    अस्तित्व खोकर भी-----
    संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
    तो महान कौन ???...बड़ा प्रश्न... जीवन में भी तो यही है ...हूबहू

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  4. वाह उम्दा अभिव्यक्ति

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  5. वाह बेहतरीन।

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  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर

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  7. पर नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
    अस्तित्व खोकर भी-----
    संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
    तो महान कौन ???
    महान हृदय ही तृप्त एवं संतुष्ट होता है
    बहुत ही सुन्दर
    लाजवाब...।

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. पर नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
    अस्तित्व खोकर भी-----
    संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण
    तो महान कौन ???
    बहुत सुंदर विचार का प्रतिपादन करती रचना सधू जी | नदिया के तट पर सभ्यताएं पोषित होती हैं तो संस्कार पलते हैं | जल के रूप में जीवन की धारा बहती है दो तटों के बीच में |

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  10. नदियाँ सर्वस्व लुटाकर भी
    अस्तित्व खोकर भी-----
    संतुष्ट, तृप्त ,परिपूर्ण

    यथार्थ
    भावपूर्ण

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