Monday, 19 October 2020

काश !!!जो गहरी नींद टूटती


आयु की परिधि 
था साँसो का घेरा 
टिमटिमाती रोशनी के नीचे 
था अंधेरे का डेरा ।

आँसू की बारिश 
सपनों के बीज 
सोते जागते 
न कभी बोया ।

स्मृति में विस्मृत 
वो वैशाखी की रात 
चुप होकर भी न जाने 
दिल कितना रोया ।

हृदय विदारक चित्कार को 
चीरती ~~~
झींसी वाली रात 
खोया-खोया -सा था 
न ऐसा कभी टोया।

आँख खुलते ही 
याद आती है 
वह सुन्न  पथरीली 
करुणामयी आँखें 
काश !!!
जो सपने को तोड़ 
सन्नाटे को चीरते ~~~
उठते पापा.....

।।सधु।।

4 comments:

  1. एक हृदयविदारक रचना प्रिय सधु जी | वर्षों पहले मेरे जीवन में भी ऐसी रात आई थी जिसमें मेरे पिताजी भी ऐसे सोये कि कभी ना उठ सके |कोई चीत्कार ये निद्रा तोड़ने में सक्षम नहीं |कदाचित जीवन का ये अंतिम सत्य सभी जानते हैं पर मानते नहीं |आपकी मार्मिक अभिव्यक्ति आँखें नम कर गई | --
    ना दुआ लगी -- ना दवा लगी .
    जाने कैसी थी नज़र लगी ,
    सासों की ड़ोर बड़ी थामी
    जब टूटी तब न खबर लगी !

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    Replies
    1. ना दुआ लगी -- ना दवा लगी .
      जाने कैसी थी नज़र लगी ,
      सासों की ड़ोर बड़ी थामी
      जब टूटी तब न खबर लगी !

      बहुत दुखद घड़ी होती है यह जिसे याद करके ही हृदय विदीर्ण जाता है...

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