आयु की परिधि
था साँसो का घेरा
टिमटिमाती रोशनी के नीचे
था अंधेरे का डेरा ।
आँसू की बारिश
सपनों के बीज
सोते जागते
न कभी बोया ।
स्मृति में विस्मृत
वो वैशाखी की रात
चुप होकर भी न जाने
दिल कितना रोया ।
हृदय विदारक चित्कार को
चीरती ~~~
झींसी वाली रात
खोया-खोया -सा था
न ऐसा कभी टोया।
आँख खुलते ही
याद आती है
वह सुन्न पथरीली
करुणामयी आँखें
काश !!!
जो सपने को तोड़
सन्नाटे को चीरते ~~~
उठते पापा.....
।।सधु।।
एक हृदयविदारक रचना प्रिय सधु जी | वर्षों पहले मेरे जीवन में भी ऐसी रात आई थी जिसमें मेरे पिताजी भी ऐसे सोये कि कभी ना उठ सके |कोई चीत्कार ये निद्रा तोड़ने में सक्षम नहीं |कदाचित जीवन का ये अंतिम सत्य सभी जानते हैं पर मानते नहीं |आपकी मार्मिक अभिव्यक्ति आँखें नम कर गई | --
ReplyDeleteना दुआ लगी -- ना दवा लगी .
जाने कैसी थी नज़र लगी ,
सासों की ड़ोर बड़ी थामी
जब टूटी तब न खबर लगी !
ना दुआ लगी -- ना दवा लगी .
Deleteजाने कैसी थी नज़र लगी ,
सासों की ड़ोर बड़ी थामी
जब टूटी तब न खबर लगी !
बहुत दुखद घड़ी होती है यह जिसे याद करके ही हृदय विदीर्ण जाता है...
नमन
ReplyDeleteनमन
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